मुक्तक/दोहा

कैमरे के मुक्तक

होते जो भी सुखद-दुखद पल,सबका चित्रण करता
जीवन के बीते लम्हों को अंक में निज के भरता
जिसका प्रियवर नाम कैमरा,वह इक यंत्र है न्यारा,
तस्वीरों में विगत सजाकर,मायूसी को हरता।

यादों को भरकर निज गृह में,इतिहासों को रचता
था कैसा उज्ज्वल अतीत,इन विश्वासों को सृजता
रिश्ते-नाते,प्रेम-नेह सब,रहें गर्भ में जिसके,
उस अलबेले यंत्र कैमरे से,कुछ भी ना बचता।

मात-पिता,बहना औ’ भाई,पति-पत्नी औ’ बच्चे
बचपन,यौवन और बुढ़ापा,बीते पल सब अच्छे
कहे कैमरा मैं हूँ साथी,साथ सदा दूँगा मैं,
जब भी झाँकोगे पीछे तुम,पाओगे सब सच्चे।

पहले श्वेत-श्याम वर्णी,फिर पाई रंगीं काया
फिर डिजीटल स्वरूप समेटे,मोबाइल तक आया
सचमुच है अब सबका साथी,मान कैमरा पाता,
जानें,समझें हम इस छायाचित्रक,की तो माया।

साथ निभाता क़दम-क़दम पर,आज कैमरा देखो
राज कर रहा है प्रियवर जो,हर दिल पर अब देखो
तस्वीरों में सजा हुआ है,संग्रह बन इठलाता,
वंदन-अभिनंदन होता अब,कम ना उसको लेखो।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]