सामाजिक

कोशिश कीजिए, हारिए नहीं, जीतिए

कहावत भी है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।बस,जीत का फासला बताता रहता है कि कोशिश सिर्फ़ कोशिश है या जीतने की जिद।यदि हम पूरी ईमानदारी से कोशिश करेंगे तो निश्चित ही हार नहीं जीत होगी।कोशिश के भी अपने अपने तरीक़े हैं।हर किसी के नजरिए का फ़र्क कोशिशों में भी दिख ही जाता है।
यदि हम अपनी कोशिश ईष्या, द्वेष, घमंड से दूर कर्तव्य, ईमानदारी और निष्ठा से ईश्वर का काम समझ कर करते हैं और खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि मानकर करते हैं तो हार का प्रश्न स्वतः ही गौड़ हो जाता है।
डा.छुटकी के शब्दों में हमारा हर काम ईश्वर का काम है और हमारी हार ईश्वर की हार होगी।तब भला ये कैसे माना जा सकता है कि हमारी हार ईश्वरक्यों होने देगा?क्या ऐसे में ईश्वर हार नहीं जायेगा?
यह अलग बात है कि असफल हो सकते हैं पर हार नहीं सकते, क्योंकि
असफलता से सीख लेकर हम फिर से कोशिश दर कोशिश करते रहेंगे जीतने तक।लेकिन असफलता को अपनी हार का आवरण चढ़ाकर निराश नहीं होंगे और लगातार अटूट विश्वास के साथ अपनी कोशिश जारी रखेंगे और तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक जीत की मंजिल नहीं मिल जाती।क्योंकि हमारी हार ईश्वर की हार है और अपने ईश्वर की हार हम होने नहीं देंगे।
आइए !फिर से नयी कोशिश करते हैं हार को जीत में बदलते हैं,ईश्वर का मान रखते हैं,उस पर विश्वास करते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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