कविता

राम खडा़ है

मुश्किलों ने कहा पाला पड़ा है
हम डरें क्यों अपने पीछे राम जब खड़ा है
कुंदन बनता सोना अग्नि में जब है तपता
पहुंचे चोटी पर दे इम्तिहान सब कड़ा है
मिलती मंजिल चल कर हर बूंद भरती गागर
इक बीज नन्हा नित पा पानी वृक्ष अब बडा़ है
हिम्मत  ना हार आंधियों से तू लड़ सकता है
लेके हौसला साथ भगवान जब खड़ा है
वचन दिया गीता में निभाने आएंगे वो
मोहन बढ़ाते सौ कदम तू दो जब बढा़ है
करते कराते भगवन तेरा नाम कर रहे
उनके बल से ही तो यह जगत सब खड़ा है

— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश