रोशनी
यों तो वह 22 साल से बेखौफ ऑस्ट्रेलिया जा रही थी, पर इस बार की बात कुछ अलग थी.
इसी बीच सदी भी बदल चुकी थी. बीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी का भी 21वां साल रहा था, वह भी कोविड वाला.
अब तक वह सीधे सिडनी जाती थी. एयरपोर्ट पहुंचते ही बच्चे मिलते और वह निश्चिंत हो जाती. अब बच्चे दो-ढाई सप्ताह बाद मिल पाएंगे. क्वारंटीन के लिए सिडनी से 6 घंटे की फलाइट दूर डार्विन में जो जाना था! उस पर पल-पल संदेश बदल रहे थे. कभी फ्लाइट बदल जाती, कभी टाइम और सामान की सीमा भी. वह तैयारी कैसे करे!
मौसम! दिल्ली की हाड़ कंपाती भयंकर सर्दी से डार्विन की भयंकर गर्मी!
ऊपर से क्वारंटीन सेंटर में नाश्ता और लंच ठंडा, उसके बाद डिनर गर्म, लेकिन उनकी मर्जी का! आखिर क्वारंटीन सेंटर था, कोई होटल तो नहीं. कमरे में कुछ गरम करने का कोई साधन नहीं.
समस्या-ही-समस्या!
”हर समस्या का कोई-न-कोई समाधान होता है, हर ताले की चाबी होती है.” मन ने समझाया.
उसने भी सकारात्मकता की चाबी कंधे पर रखी, उस पर रोशनी के लिए प्रभु-कृपा की शमा लटका दी. प्रभु-कृपा से ही तो सब कुछ होता है न! अब तक भी प्रभु-कृपा ने ही तो बचाया है! बाजार से पोहे-उपमा के रेडी मिक्स के पैकेट ले आई. गरम पानी के लिए कैटिल तो होगी ही. तीन-मिनट में पोहे-उपमा तैयार! बाकी भी हल निकलते जाएंगे.
प्रभु-कृपा की उसी शमा की रोशनी में नहाई 75 साल की उम्र में भी वह भाग-भागकर तैयारी कर रही थी.
यह कथा विदेश यात्रा और क्वारंटीन अनुभव के पहले लिखी थी. इसी रोशनी के साये में प्रभु-कृपा से क्वारंटीन का समय बड़े अच्छे-से और सरलता से व्यतीत हो गया. लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध हईं , बाकी प्रभु-कृपा ने पूरा साथ दिया.