सब कुछ ठीक हो जायेगा
यादें जुड़ी है सरसों के खेत से
उनके साथ मैं भी रहता बस
अब महसूस करने जाता हूं
सब कुछ ठीक हो जाएगा
खुद को यही समझाता हूं
बचपन था अलबेला
ना कोई परेशानी थी
अठखेलियां करते थे बहुत
रातें सितारों वाली थी
खाली होते थे हाथ
मगर खुशियां भरपूर थी
जी लेते थे एक-एक पल
बेशक तब दिल्ली बहुत दूर थी
अब बैठकर अपने ऑफिस में
धुन गांव की गुनगुनाता हूं
सब कुछ ठीक हो जाएगा
खुद को यही समझाता हूं
यह मेरा है ,यह तेरा है
अब घर बटने लगे हैं
संवेदना ही कम हो गई है
अपने आसपास घटने लगे हैं
मैं नादान हूं सब ये कहते थे
क्या उम्र भर ऐसा ही रहूंगा
बदल गया मैं अगर तो
ऊपर वाले से क्या कहूंगा
अलबेले परिंदे सा इधर-उधर घूमता हूं
कागज के पन्नों में अब सुकून ढूंढता हूं
उठता हूं सुबह जिम्मेदारियों के साथ
शाम घर इन्हीं के साथ वापस आता हूं
सब कुछ ठीक हो जाएगा
खुद को यही समझाता हूं