शीर्षक :- शुद्ध काव्य की खोज
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।
पंक्तियां तैरती-डुबती सी हैं
धूमिल सा यह रास्ता है मेरा ।
गमों का सांया भंवर बन कर
तैरते हुए उन सभी अक्षरो को
और किंचित उन शब्दों को
अपने अन्दर समेट कर
अथाह गहराई में ले जाती ।
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।
टुटे हुए शब्दों को बटोर कर
माना बनाती हूंँ मैं कविता
कहां मिलेगा इनको इनका
उतना स्नेह और आदर ।
जो इनको मिलना है होता
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।
सरोबार पन रस वाक्यों को
कौन होंठो से लगाऐगा ।
पानी से बिखरे, भीगे शब्दों का
भला आस्वादन कौन करेगा ?
इनका स्वाद मानो है फीका ।
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं मैं
खुद जीवन बना काव्य मेरा ।