मिलो तो सागर बन जाऊं
प्यार के मधुरिम आखर बन जाऊं।
सुरीले सरगम, गागर बन जाऊं।
मैं तो सूखा हुआ इक दरिया हूं,
तुम मिलो तो फिर सागर बन जाऊं।।
शुष्क मन में तुम बन बदली छाना।
इकबार मिलो तो मत कहीं जाना।
आया हूं जन्मों की प्यास लेकर,
नेह-नीर पिला, ठहर नहीं जाना।।
हर प्रश्न का तुम जवाब बन जाना
आंखों का मधुरिम ख्वाब बन जाना।
मधुर प्रेम-पथ में पग रखूं जब मैं,
तुम उजाला, घनी छांव बन जाना।।
— प्रमोद दीक्षित मलय