कविता

मिलो तो सागर बन जाऊं

प्यार के मधुरिम आखर बन जाऊं।
सुरीले सरगम, गागर बन जाऊं।
मैं तो सूखा हुआ इक दरिया हूं,
तुम मिलो तो फिर सागर बन जाऊं।।

शुष्क मन में तुम बन बदली छाना।
इकबार मिलो तो मत कहीं जाना।
आया हूं जन्मों की प्यास लेकर,
नेह-नीर पिला, ठहर नहीं जाना।।

हर प्रश्न का तुम जवाब बन जाना
आंखों का मधुरिम ख्वाब बन जाना।
मधुर प्रेम-पथ में पग रखूं जब मैं,
तुम उजाला, घनी छांव बन जाना।।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]