मन-मयूर, मन करेगा नर्तन
नर-नारी संबन्ध निराला।
पत्नी, बेटी हो या खाला।
इक-दूजे को देखे बिन,
गले से उतरे नहीं निवाला।
नारी को कहते घरवाली।
कभी न रहती है वह खाली।
घर ही नहीं, बाहर भी वह,
नर की प्रेरणा डाली-डाली।
इक-दूजे को बहुत सताते।
इक-दूजे के गाने गाते।
इक-दूजे की कमी निकालें,
इक-दूजे बिन नहीं रह पाते।
कोई क्षेत्र न रहे अछूता।
नारी का ही है, ये बूता।
प्रेम लता में बांधे रहती,
वरना चल जाते हैं जूता।
नारी नर को कोष रही है।
फिर भी उसको पोष रही है।
पिता, भाई और पति की खातिर,
पल-पल मर, मदहोश रही है।
प्रतियोगी तुम नहीं हो समझो।
इक-दूजे के गुणों को समझो।
नर नारी बिन रहे अधूरा,
नर बिन नारी, क्या है समझो?
नर वीर है, सिंह लगाता।
सदैव युद्ध के गाने गाता।
नारी के आँचल की छाव में,
अहम मिटे, तब ही सुख पाता।
इक-दूजे के साथ में चलकर।
हाथ थाम लें, आगे बढ़कर।
चढ़े विकास की सीढ़ी तब ही,
गले लगा लें, सबको हँसकर।
भाई-बहिन का रक्षा बंधन।
माता का दुलार है बंधन।
जग में देखो अतुलनीय है,
पति-पत्नी का गृह प्रबंधन।
नरक देखना, कर लो घर्षण।
स्वर्ग की चाह, करो समपर्ण।
इक-दूजे की शक्ति बनो तुम,
यही है पूजा, यही है दर्शन।
करो न केवल, पे्रम प्रदर्शन।
दिल का दिल से कर लो अर्चन।
प्रेम और विश्वास मिले बस,
मन-मयूर, मन करेगा नर्तन।