नहीं हो पूँजीपतियों की सत्ता
फ्रेडरिक एंजेल्स उनके अभिन्न मित्रो में थे । ‘दास कैपिटल’ में उनकी महती भूमिका रही है । वर्ष 1867 में प्रकाशित ‘दास कैपिटल’ ने इतनी उथल-पुथल मचाई कि संसारभर में कार्ल मार्क्स और मार्क्सवाद पूरी तरह से छा गए । उसने दार्शनिक और अर्थशास्त्रियों को हिलाकर रख दिया !
मार्क्स दुनिया को बदलना चाहते थे । सिर्फ वे ही नहीं, प्रायः लोग दुनिया को बदलना चाहते थे, पर वो जो खुद को या तो पूर्ण समझते थे, वे बदल नहीं पाते या बदलना नहीं चाहते थे !
‘दास कैपिटल’ में कार्ल मार्क्स ने सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ‘पूंजीवाद’ वह अर्थव्यवस्था है, जो मालिक बनने की इच्छा, लाभ कमाने की लालसा और उद्योगपतियों द्वारा स्वयं निर्णय लेने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधारित है व होती है !
यह किसी खून चूसनेवाले जीवों की भाँति श्रम के शोषण से पनपती है और अंत में आत्मघाती साबित होती है।
कार्ल मार्क्स का मानना था कि शोषित और शोषक दो ही वर्ग है। सर्वहारा वर्ग और बुर्ज़ुआ समाज । पूँजीवाद नित्यप्रति और सतत बढ़ रहे संकटों का चिरजड़ित प्रतिमा है, किन्तु एक दिन श्रमिक वर्ग और उनके संगठन इसे ढहा देंगे !
जर्मनी में मई 1818 को मार्क्स पैदा हुए थे और सिगमंड फ्रायड 6 मई को, मार्क्स के जन्म के 38 वर्ष बाद, बावजूद फ्रायड वह दूसरा चिंतक है, जिसने आने वाली सदियों के चिंतन पर सबसे गहरा असर डाला। फ्रायड ने बताया कि बाहर की जो दुनिया है, उसका हमारे अवचेतन से बहुत गहरा वास्ता है।
इस दुनिया की गुत्थी को ठीक से समझने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर प्रवेश करें। ध्यातव्य है, जन्मभूमि जर्मनी में मार्क्स की कोई कद्र नहीं है । चीन और रूस जैसे देशों में सत्ता एक व्यक्ति में ही केंद्रित हो जाने से मार्क्स अब अप्रासंगिक ही हो गए हैं, ऐसा बिल्कुल ही लगने लगा है!