कविता

दया भाव

चिलचिलाती धूप में
राष्ट्रीय राजमार्ग पर
दुर्घटना ग्रस्त बाइक सवार को देख
पहले तो मैं घबड़ाया,
फिर हिम्मत करके
अपनी बाइक को किनारे लगाया ।
घायल युवक के पास गया,
उसकी हालत देख
मैं काँप गया,
फिर वहाँ से भाग निकलने का
विचार किया।
परंतु दया भाव से
मजबूर हो गया।
अब आते जाते लोगों से
मदद की उम्मीद में सड़क पर
आते जाते लोगों से
दया की भीख माँगने लगा।
बमुश्किल एक अधेड़ सा व्यक्ति
आखिर रुक ही गया,
मेरी उम्मीदों को जैसे
पंख लग गया।
मैंने हाथ जोड़
मदद की गुहार की,
मेरी बात उसे
बड़ी नागवार लगी।
उसने समझाया
लफड़े में न पड़ भाया,
तू बड़ा भोला दिखता है
फिर लफड़े में क्यों पड़ता है?
ऐसा कर
तू भी जल्दी से निकल ले
पुलिस के लफड़े से बच ले।
ये तेरा सगेवाला नहीं है
मरता है तो मरने दो
दया धर्म का ठेकेदार न बन,
तुम्हारे दया धर्म के चक्कर में
वो मर गया तो
कानून का लफड़ा भारी पड़ जायेगा
तब तुम्हारे दया धर्म का भाव
तुम्हारे ही किसी काम नहीं आयेगा।
उसने मुफ्त का भाषण पिलाया
और नौ दो ग्यारह हो गया।
एकबार तो
मैं भी हिल गया,
फिर उम्मीद लिए
लोगों से दया पाने की
कोशिशों में जुट गया,
कोशिश रंग लाई,
तभी एक एम्बुलेंस आ गई
किसी तरह घायल को
लेकर चली गई।
मैं सोचने लगा
लगता है
लोगों का जमीर मर गया है,
पर मन मानने को
तैयार न हुआ,
दया भाव अभी जिंदा है
एम्बुलेंस वाला यही तो बताकर
उम्मीद के साये में
घायल को ले गया है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921