कविता

होली कविता

इंद्रधनुषी रंग चुरा कर आया फागुन मनभावन
ठंडी शीतल मलय पवन संग झूम रहा मदहोश ये मन।
इत उत बाजत ढोल मजीरा
गावत सब मिल फाग़ जोगिरा।
निकल पड़ी मस्तों की टोली
सब मिल खेलत प्रेम की होली
ईर्ष्या रंजिश वैर दिलों के चलो मिटा दें।
हर बस्ती में प्यार की चल के अलख जगा दें।
सबकी गालों पर मल दें हम प्रेम गुलाल।
तन मन अंग बदन भीगा जन हुए निहाल।
लिए हाथ अबीर की झोली रंग भरी पिचकारी
झूम झूम मस्ती में डूबे सब नर नारी।
बाजत ढोल मंजीरा बाजे गावत राग धमाल।
लपट झपट तन रंग लगावत बीहसत हैं नर नार।
लिए हाथ स्नेह अबीरा प्रीत के रंग में घोली।
एक दूजे को रंग लागावत हंस हंस खेलत होली
बरसत  घर आंगन रंग पावन
आया फागुन मनभावन।
आया फागुन मन भावन।
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]