सामाजिक

हमारी भी जिम्मेदारियां

संसार के हर प्राणी की कुछ न कुछ व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारी है,साथ ही राष्ट्र,संसार,प्रकृति और ब्रह्मांड के प्रति भी किसी न किसी रूप में जिम्मेदारियां हैं।इस बात से भला कोई इंकार कैसे कर सकता है?जिम्मेदार होने और जिम्मेदारी निभाने में बहुत थोड़ा अंतर है,मगर अंतर तो है।जिम्मेदार होना अलग बात है और जिम्मेदारी निभाना अलग। हम सभी की कुछ जिम्मेदारी है तो कुछ नैतिक जिम्मेदारी भी।खुद, परिवार, पड़ोसी, मोहल्ले, गांव, नगर, शहर, जिला, प्रदेश, देश ,समाज, प्रकृति,वातावरण, संसार और यहां तक कि ब्रह्मांड तक के प्रति भी।बस महसूस करने और निभाने की जरुरत है। यह अलग बात है कि जिम्मेदारियों के स्वरूप में अंतर हो सकता है,लेकिन बचकर निकलना,मुँह चुराना या पल्ला झाड़ लेना अलग बात है। क्योंकि हम हैं ,तभी हमारा परिवार है,पड़ोसी, शहर, प्रदेश, देश और संसार है। हर प्राणी एक दूसरे का पूरक है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी तो बनती है।आखिर जरूरत भी तो हमारी ही है।
जिस तरह हम अपनी निजी, घरेलू ,संबधियों के प्रति सचेत होने की चेष्टा में लगे रहते हैं,उसी प्रकार छोटी बड़ी सार्वजनिक जिम्मेदारी भी हमारी ही है।बिजली, पानी ,अन्न की बर्बादी, गंदगी फैलाने, सार्वजनिक संपत्तियों के प्रति,मानवीय संवेदना, दुर्व्यवहार, अन्याय, महिला सुरक्षा,कन्या भ्रूणहत्या, हरियाली, प्रदूषण, सामाजिक सदभावना, वसुधैव कुटुम्बकम, दुरुपयोग, सच के साथ खड़े होना और साथ देना, यथा संभव मदद करना, समाज ,राष्ट्र, संसार, प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सचेत रहना, त्योहारों की भावना का वास्तविक सम्मान आखिर हम सब ही तो जिम्मेदार हैं, परंतु क्या हम अपनी जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं ? शायद हाँ या शायद नहीं।
वास्तविक स्थिति तो यह है कि मात्र एक इकाई के रूप में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर यदि हम विचार कर चिंतन मनन के साथ संसार का वातावरण बनाने के लिए सिर्फ अपना ही लाभ देखें और अपनी जिम्मेदारी निभाएं /रेखांकित करें कि एक जिम्मेदार इकाई के रूप में हमारी क्या क्या जिम्मेदारी है?और हम अपनी जिम्मेदारी का कितना भार उठा रहे हैं या उठाना ही होगा?तो यह धरा,यह संसार ही नहीं समूचे ब्रह्मांड का स्वरूप ही निखर जायेगा, जिसका लाभ किसी न किसी रुप में हर प्राणी को स्वास्थ्य, सुविधा, सुरक्षा और खुशहाली के रूप में मिलना निश्चित हो जायेगा।
बस जरूरत है नींद से जागने ,आगे बढ़कर अपनी नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कर निर्वहन करते हुए खुद से संसार, ब्रह्मांड तक को नयी दिशा देने के लिए संकल्प की।
आइए संकल्प लें और अपने कदम बढ़ायें, कारवां खुद बखुद बन जायेगा, फिर सब कुछ हमारी दिनचर्या में शामिल हो जायेगा। तब समूचे संसार का मनोरम सौंदर्य हमें शीतलता प्रदान करेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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