कविता

ऐसा एक आशियाना हमारा हो

ऐसा एक आशियाना हमारा हो
बर्फ की चादर ओढ़े श्वेत पहाड़ों की वादियों में
सुदूर से आती कल-कल करती नदी का हो किनारा
पहाड़ों की गोद से निकलते झरनों का मधुर संगीत
और दूर तक फैला हरी घास का हो गलियारा
आसमान में इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा सा घेरा हो
काश ऐसे में एक आशियाना हमारा हो

खिड़कियों से झाँकते उगते सूरज की
पहली किरण की हो जगमगाहट
फूलों और फलों से लदे पेड़ों पर
पक्षियों के झुण्ड की हँो चहचहाहट
रंग बिरंगी ड्रेसों में स्कूल जाते बच्चों की हो मासूम सुगबुगाहट
सुबह शाम मन्दिरों से आती घंटियों की हो कर्णप्रिय घनघनाहट
बादलों और सूरज की आँखमिचैली का खेल न्यारा हो।
काश ऐसे में एक आशियाना हमारा हो

ऐसे सपनों के घर में
हो सर्वत्र ईश्वर का वास और मन में खुशी व उमंग
हो सदैव बड़ों का आशीर्वाद और अपनों का मधुर संग
अतिथियों का आगमन हो और छाई रहे जीवन में तरंग
नित्य नई खुशियों से सब भरते रहें जीवन में रंग
परस्पर स्नेह प्रेम और विश्वास की भावना का बोलबाला हो
काश ऐसा एक आशियाना हमारा हो।

— सुधा अग्रवाल

सुधा अग्रवाल

गृहिणी, पलावा, मुम्बई