गज़ल
प्रभु हवा में जहर कैसा बो गया।
रोग से हर शहर रोगी हो गया।
काल बन के लहर कोविड छा गई।
बेवसी को देख इंसा रो गया।
आज तक जो बोलता हर शख्स से।
कुछ समय पहले लहर में खो गया।
हे प्रभो इस खेल को अब बंद कर।
मातु-पित के सामने सुत सो गया।
मौन क्यों सरकार अब क्या सोचती?
आ सके ना लौट कर अब जो गया।
— प्रेम सिंह राजावत ‘प्रेम’