कविता

परिवर्तन

संसार में परिवर्तन
अकाट्य सत्य है,
जीवन है तो मृत्यु भी है
निर्माण है तो विनाश भी
दिन है तो रात भी
राजा है तो रंक भी
जो बनेगा बिगड़ेगा भी
जन्मेगा तो मरेगा भी।
परिवर्तन सतत चलने वाली
अविचलित प्रक्रिया है,
संसार के कण कण के साथ
कभी न कभी परिवर्तन होगा ही।
ये प्रकृति का नियम है,
सजीव हो या निर्जीव
यही सबके साथ है।
इसमें बदलाव असंभव है
चाहे तो सर्वशक्तिमान ईश्वर भी
इसे बदल नहीं सकता।
आज हंस रहे हैं
कल को रोयेंगे भी
अच्छे बुरे पल भी
आते जाते रहेंगे।
परिवर्तन प्रकृति का
शास्वत सत्य है,
ऐसा हो ही न
ये तो नामुमकिन है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921