सामाजिक

शादीशुदा बेटे की विडंबना समझो

शायद इस विषय के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा। हर विषय, हर किरदार पर लिखा गया है पर शादीशुदा बेटे कि हालत और मन:स्थिति को शब्दों में ढ़ालना आसान नहीं। ये एक ऐसा किरदार है जिस पर दोगुनी जिम्मेदारी होती है। बेटा खुद को माँ-बाप का कर्ज़दार समझता है क्यूँकि जन्म दिया है। और पत्नी का रखवाला क्यूँकि अग्नि को साक्षी मानकर ताउम्र साथ निभाने का वचन दिया है, तो हुआ न सैंडविच।
अक्सर हम कई घरों में सास बहू को लड़ते झगड़ते देखते है। दोषारोपण और तू तू मैं मैं से शुरू होते परिस्थिति अलग होने की कगार तक आ जाती है। जब बेटे की शादी होती है तो यहाँ पर एक माँ को कुछ बातों के लिए खुद को तैयार करना जरूरी होता है। पहले तो आपका औधा एक पायदान उपर उठता है, यानी कि माँ से आप सासु माँ बनने जा रही है। ये किरदार पूरे परिवार में गरिमामयी और जिम्मेदारी से भरा होता है। आपको अपने परिवार की गरिमा बनाए रखनी होती है। इसलिए पहले तो मंत्री की कुर्सी खाली कर दीजिए और एक सलाहकार बन जाईये। आने वाली बहू का एक लक्ष्मी के रुप में स्वागत किजीए और बेटी समझकर स्वीकार कीजिए। आपने आज तक घर परिवार संभाला अब जब संभालने वाली आ गई है तो उस पर भरोसा करके घर परिवार और बेटे को सौंप दीजिए, और आप अब खुद के लिए जिए, जब जहाँ बहू को जरूरत हो सही सलाह देकर समझाईये।
अपने खानदान की परंपराओं और रिश्तेदारों से परिचित करवा कर बहू को घर की नींव बना दीजिए। खुद भी रिश्तेदारों के साथ मेलजोल बनाकर रखिए और बहू को भी सबके साथ अच्छे रिश्ते बांधने दीजिए जब आप नहीं रहेंगे तब इसी रिश्तेदारों के साथ ज़िंदगी गुज़ारनी है।
बेटे पर हक जताना छोड़ दीजिए अब जितना हक आपका है उतना ही बहू का भी है। क्यूँकि बहू सिर्फ़ आपके बेटे के भरोसे अपनी पूरी दुनिया छोड़ कर आई है, और उन दोनों को ज़िंदगी साथ-साथ बितानी है तो उनकी ज़िंदगी में दखल अंदाज़ी न करें प्यार से रहने दें। बेटा आपका ही है आपका ही रहेगा पर जब तक आप अपनी हद में रहेंगे।
अगर बहू नौकरी कर रही कामकाजी है तो जब तक आप सक्षम है उसके हर काम में हाथ बढ़ाते रहिए। आख़िर आपके बेटे के भविष्य को आर्थिक रुप से सुरक्षित करने के लिए काम कर रही है। कभी कभार बहू के ऑफिस से आते ही गर्म चाय का कप थमा दीजिए, या गर्म रोटी बनाकर खिलाइये बहू के दिल में सम्मान बढ़ जाएगा। वो भी किसी माँ बाप के जिगर का टुकड़ा है पर आपके घर की तो रिद्धि-सिद्धि है। बेटी की तरह प्यार से रखोगे तो घर में रौनक बनी रहेगी।
कभी बहू की तबियत ठीक नहीं तो प्यार से आराम करने दीजिए दो दिन आप घर संभाल लीजिए। ऐसी बहुत सी छोटी छोटी बातों से घर में शांति बनी रहेगी।
साथ में घर के सबसे जिम्मेदार व्यक्ति ससुर जी होते है जिनका प्रभाव घर के हर छोटे बड़े पर होना चाहिए। परिवार को संजोकर रखना है तो भाषा पर कमान कसते सबको उनकी गलती का भान करवाना चाहिए और न मानने पर सख़्ती से या प्यार से एक अनुशासन से घर में शांति का माहौल गढ़ना चाहिए। वह शख़्सीयत जब एक बार बोल दें कि आगे चिंगारी नहीं उठनी चाहिए तो सबको ये बात समझ में आ जानी चाहिए। दो पीढ़ी की सोच में अंतर तो रहेगा, पर समझदारी से परिवर्तन को स्वीकार करते चलेंगे तो साथ रहना आसान बन जाएगा।
और ऐसे ही कुछ बातें बहू को भी समझनी चाहिए की आप बेटी से बहू बनने जा रही है।  एक कूल की मर्यादा और परंपरा आपके जिम्मे आने वाली है। मायके में आप एक बिंदास लड़की बनकर रहती हो पर ससुराल में आपका एक स्थान होता है, जिनकी कई जिम्मेदारीयां होती है। तो अपने माँ-बाप के दिए हुए संस्कारों को उजागर करते ससुराल में सबका दिल जितना है। अब सास आपकी माँ है, ससुर आपके पिता और देवर-ननंद आपके भाई-बहन ज़िंदगी ही जब यहाँ काटनी है तो सबको अपना समझ कर हंसी खुशी सबको अपनाना है।
पर इंसान की फ़ितरत और स्वभाव में अहं नाम का तत्व हर पल सक्रिय होता है। जिसके चलते आपसी टकराव घर की शांति छीन लेता है। बहू को सास में अवगुण नज़र आते है तो सास को लगता है कि नई नवेली बहू मेरे स्थान पर कब्ज़ा कर लेगी, ऐसी मानसिकता के चलते कोई एक दूसरे को अपना नहीं पाता और हर रोज किसी न किसी बात पर चिंगारी उठती रहती है। और इस परिस्थिति में बेटे की हालत खस्ता हो जाती है। माँ को कुछ बोले तो बीवी का गुलाम कहलाता है, और बीवी को कुछ बोले तो माँ का लाड़ला या छक्का कहलाता है। बेटा करे तो क्या करें। एक तरफ़ जन्म देने वाली जनेता होती है और दूसरी तरफ़ सिर्फ़ उसके भरोसे अपना सबकुछ छोड़ आई बीवी, जिसके साथ उसे पूरी ज़िंदगी बितानी है। और घर में शांति बनी रहे इस सोच के साथ बेटा चुप रहता है। पर उसकी भीतरी हालत सैंडविच जैसी होती है। बाहर से काम करके थकाहारा इंसान घर लौटता है सुकून को तलाशते पर घर में अगर झगड़लू माहौल रहेगा तो कहाँ जाएगा। वो मानसिक तौर पर टूट जाता है, पिसता रहता है। प्रतिदिन के झगड़ों से तंग आकर माँ-बाप से अलग होता है तो समाज की चिंता की लोग क्या कहेंगे। और माँ बाप की तरफ़दारी करके पत्नी से अलग होता है तो खुद की ज़िंदगी पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। उसकी दिमागी हालत के बारे में कोई नहीं सोचता। माँ और बीवी दोनों का गुनहगार बनकर रह जाता है बिना कसूर के।
माना कि चार बर्तन साथ में रखेंगे तो वो भी बजते है, तो चार इंसानों के बीच मन मुटाव जायज़ है, पर मत भेद को मन भेद मत बनने दो समझदारी से हर मसले का हल ढूँढो खुद की गलती का आत्मनिरीक्षण करो। हर झगड़े का मुख्य कारण सामने वाले की गलती ही होता है, किसीको अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता। क्यूँ अपनों के साथ इतना वैमनस्य पालना, ज़िंदगी बहुत छोटी है साथ रहकर जश्न की तरह मनाओ हंसी खुशी एक दूसरे का सहारा बनकर रहो। जब हाथ पैर नहीं चलेंगे तब बहू बेटा ही काम आने वाले है। अकेलापन मौत से पहले मार देता है। प्यार बांटो, प्यार पाओ कल क्या होने वाला है कोई नहीं जानता है, जो परिवार साथ तो हर मुश्किल है आसान।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर