सामाजिक

पहले अपनी जेब टटोलिए

देश में बहुत सारे मुद्दों में एक मुद्दा बढ़ती हुई आबादी भी अहम मुद्दा है, ऐसे में कई लोग बिना सोचे, बिना अपने बैंक बेलेंस की परवाह किए और बिना ये सोचे कि परिवार वहन कैसे होगा चार पाँच बच्चों की लाइन लगा लेते है। फिर भले चाहे बच्चें फटेहाल हालत में कुपोषण का शिकार होते पल रहे हो। परिवार नियोजन में सबसे पहला मुद्दा हर दंपत्ति का आर्थिक स्थिति को लेकर होता है। बच्चे पैदा करना बड़ी बात नहीं, आप बच्चों को किस तरह की परवरिश देना चाहते हो ये बात बहुत मायने रखती है। सोचो घर में आप एक ही कमाने वाले है और तीन चार बच्चें पैदा कर लेते है तो न तो आप खर्चे झेल पाओगे न बच्चें ठीक से पले बढ़ेंगे। इसलिए सबसे पहले अपनी आय को महेत्व देते हुए ये निर्णय लीजिए की बच्चे को जन्म देने के बाद आप सारे खर्च उठाने के काबिल है ? क्यूँकि माँ की कोख में बच्चे का बीज बोते ही अस्पताल और माँ के खानपान से लेकर सारे टेस्ट और डिलीवरी तक का आयोजन आपको करना होता है। और एक बार जब बच्चा जन्म लेता है उसी पल से आपको जेब ढ़ीली ही रखनी पड़ती है। पग-पग पैसों की जरूरत पड़ेगी।
अगर बेटा हुआ तो जब तक वो पढ़ लिखकर कमाने न लगे उस वक्त तक उसके प्रति आपकी जिम्मेदारी बनती है और अगर बेटी जन्मी तो जन्म से लेकर उसकी पढ़ाई और शादी में दिए जाने वाले दहेज तक की जिम्मेदारी भी आपको निभानी है। तो बेशक परिवार नियोजन में आर्थिक परिस्थिति बहुत मायने रखती है।
आजकल एज्युकेशन से लेकर हर चीज़ महंगी हो गई है। no doubt सबके बच्चें हर हाल में पल ही जाते है, पर एक अभिभावक के नाते आपका फ़र्ज़ बनता है कि अपने बच्चों को आला दरज्जे की सुख सुविधा देकर पाले पोषे। फ़ैमिली प्लानिंग से अपने परिवार को छोटा रखें, एक या दो बच्चे आराम से पल जाते है। बच्चों के खानपान परवरिश और शिक्षा पर जितना खर्च करने में आप सक्षम हो उतने ही बच्चों की प्लानिंग करें, और दो बच्चों के बीच तीन चार साल का फासला रखें ताकि एक बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए कुछ खर्चे बंद हो जाए उसके बाद दूसरे बच्चे के लिए सोचें।
और अगर आपको लगे की एक बच्चे में ही आप खर्चे उठाने में थक गए है तो एक ही काफ़ी है, दूसरे बच्चे के बारे में सोचिए भी मत। क्यूँकि बच्चें पैदा करना ही काफ़ी नहीं उस बच्चे की ज़िंदगी का सवाल है अगर अच्छी परवरिश नहीं दे सकते तो बच्चे पैदा करनेका आपको कोई हक नहीं। तभी तो परिवार नियोजन वालों ने ये सूत्र रखा है कि “छोटा परिवार सुखी परिवार” फैमिली प्लानिंग और आर्थिक स्थिति के बीच मजबूत संबंध है इसलिए सोचें समझे फिर बच्चें पैदा करें।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर