लघुकथा

प्यार ही पूजा है !

” ओए, अमर ! क्या बात है ? कहाँ खोया हुआ है ? कबसे आवाज लगा रहा हूँ..सुन ही नहीं रहा है !”
” सॉरी यार ! आज बहुत दिन बाद रजनी का मैसेज आया है , वही पढ़ने में इस कदर डूबा हुआ था कि तेरी तरफ ध्यान ही नहीं गया। तू तो जानता ही है न रजनी के बारे में ? “
” हाँ ..हाँ ! जानता हूँ रजनी के बारे में ..! वही रजनी न जो जहाँ भी अपना फायदा देखती है उससे जोंक की तरह चिपक जाती है। जी भर कर उससे फायदा उठाती है और फिर उससे किनारा कर लेती है। तेरे साथ भी तो यही किया है न उसने ? चरित्रहीन कहीं की ..!” सुरेश बड़बड़ाया था।
” नहीं यार.. सुरेश ! ऐसा नहीं ! प्लीज मेरे सामने उसे चरित्रहीन न कह ! वह जैसी भी है, मेरा पहला व अंतिम प्यार है। मुझे हमेशा उसका इंतजार रहेगा !”
” पता नहीं ऐसा क्या पसंद आ गया तुझे उसमें ? मुझे तो वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती !”
” यार सुरेश ! वो कहावत सुनी है न …दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है ? ‘ बस कुछ ऐसा ही है ..तू नहीं समझेगा यार ये दिल का मामला ..!”
“लेकिन उसका इतने सारे लड़कों के साथ घूमना फिरना, सबसे संबंध रखना ,तुझे बुरा नहीं लगता ?”
” यार सुरेश ! तू कभी मंदिर गया है ?”
“हाँ ! अक्सर जाता हूँ !”
“तो क्या वहाँ तू अकेले होता है ? कोई और भक्त नहीं होता वहाँ माताजी का ?”
” अच्छा ! अब समझा ! तो रजनी देवी है और उसके पीछे मंडरानेवाले सारे लड़के उसके भक्त ….!” कहते हुए सुरेश ने जोर से ठहाका लगाया।
” तुमने ये नहीं सुना ‘प्यार ही पूजा है’ ? और मैं दिल से उससे प्यार करता हूँ।… और लड़के क्या करते हैं, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं अपनी तपस्या कैसे छोड़ दूँ ?”  कहने के बाद अमर एक पल भी वहाँ रुका नहीं था। चल दिया था एक तरफ दीवानों की तरह।
राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।