कहानी

सस्ती मजदूरी

रोज की भांति घनश्याम के हाथों में खाने का टिफिन नहीं था, सड़क सुनसान होने के साथ ही पूरे बाजार बंद थे | घनश्याम की पीठ में जोरदार लाठी पड़ती है, उसने पीछे मुडकर देखा ! तो वह लाठी पुलिस की लाठी थी | घनश्याम ने दोनों हाथ जोड़कर कहा मैंने कुछ नहीं किया है साहब! पुलिस वाले ने कहा- तू कह रहा है कुछ नहीं किया, फालतू सड़कों पर क्यों घूम रहा है ? पता नहीं तुझे लॉकडाउन लगा है, मैं तुझे तीन दिन से खाली हाथ घूमते देख रहा हूं| यह बात सुनकर घनश्याम की आंखें भर आती हैं | वह कहता है साहब चार दिन हो गए हैं मेरे दोनों बच्चे भूखे हैं, उन्होंने एक अन्न का दाना तक नहीं खाया है |
पुलिस वाले ने पूछा कहां का रहने वाला है, उस ने बताया कि वह आगरा जिले के ग्रामीण आंचल में एक छोटे से गांव का रहने वाला हैं | परिवार में दो बच्चों के साथ पत्नी सुनीता है और माता-पिता गांव में रहते हैं | बेरोजगारी के चलते आज से तीन साल पहले दिल्ली शहर में एक बैग बनाने वाली कंपनी में सिलाई का काम करता हूं, प्रतिदिन के हिसाब से छः सौ रुपए मिलते हैं. पांच दिन पहले अचानक कंपनी वालों ने कहा कि कल से काम पर मत आना, कंपनी बंद रहेगी, साहब यह सब क्यों हो रहा है? लॉकडाउन क्या होता है? पुलिस वाले ने कहा हमारे देश में कोरोना नामक महामारी फैल रही हैं, उसी के चलते बहुत से लोग मर रहे हैं, यह बीमारी एक दूसरे से बात करने व साथ ही लोगो की भीड़ भाड़ से फैलती है | अब तू अपने घर जा |
घनश्याम को चलते रास्ते में एक आदमी ने बताया कि एक एन०जी०ओ० वाले फ्री में खाना बांट रहे है | वह पहुंचकर देखता है, तो वहां पर खाने लेने वालों की लंबी कतार लगी हुई थी, वह भी पीछे से जाकर लाइन में लग जाता है, जब उसकी बारी आती है, तब खाना खत्म हो जाता है, वह निराश होकर अपने बच्चों के पास लोट आता है | घनश्याम एक किराए के कमरे में गुजारा करता है, घर में कुछ खाने को नहीं था, पत्नी सुनीता ने कहा चलो अब अपने गांव ही चलते हैं, कम से कम मेहनत मजदूरी करके अपना पेट तो भर सकते हैं | यह बात सुनकर घनश्याम ने कहा घर जाने के लिए किराया भी नहीं है | पत्नी ने कहा खाने बनाने वाले बर्तन एवम् कमरे में जितना भी सामान है उस सब को बेच दो जिंदगी रही तो फिर खरीद लेंगे | घनश्याम ने 900 रुपए में ही सारा सामान एक पड़ोसी को बेचकर घर के लिए निकल पड़ा, घर जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था, किसी तरह ट्रक वाले से आग्रह करके घर पहुंच जाता है |
घनश्याम के माता-पिता बच्चों को देखकर बहुत खुश हुए, चलो गनीमत है कि आप सब लोग घर आए गए, सभी लोगों ने मिलकर एक साथ खाना खाया, अगले दिन सुबह होते ही चाचा के लड़के रामू से पूछा! क्या काम मिल रहा है भाई आजकल कल? रामू ने बताया कि पहले ही की तरह केवल ईट भट्टे पर काम मिल रहा है, और कोई ढूडें काम नहि, उसी काम को सब लोग कर रहे हैं | घनश्याम ईट भट्टे पर पहुंचकर मालिक से दुआ सलाम करके काम करने लग जाता है | शाम को काम खत्म करके जब मालिक से पैसे मांगता है, तो मालिक ने पूरे दिन की मजदूरी के 150 रुपए दिए | घनश्याम ने पूछा पहले तो आप 400 रुपए देते थे, अब इतने कम क्यों ? मालिक ने कहा कि लॉकडाउन के चलते मजदूरी सस्ती हो गई है, अब बहुत सारे मजदूर कम पैसों में काम करने के लिए राजी है, अगर तुझे 150 रुपए अच्छे लग रहे हैं, तो ठीक है, वरना कल से काम पर मत आना, लॉक डाउन में काम मिलना मुश्किल हो रहा है |
वह बेचारा 150 रुपए लेकर घर चला जाता है, वह करता भी तो क्या करता! क्योंकि उसको पैसों की बहुत जरूरत थी | घनश्याम ने अपने मन में सोचा भले ही मजदूरी सस्ती हो गई है, लेकिन परिवार की खातिर सब कुछ करना पड़ता हैं |
आखिर पेट की खातिर सस्ती मजदूरी जरूरी………..
— अवधेश कुमार निषाद मझवार

अवधेश कुमार निषाद मझवार

ग्राम पूठपुरा पोस्ट उझावली फतेहाबाद आगरा(उत्तर प्रदेश) M-.8057338804