हे दिनों के दाता
हे दिनों के दाता
विधाता हो तुम
हे सृष्टि के पालक
संहारक हो तुम
जब कोई मुसीबत में
पड़ी नाव मेरी
हमे तू संभाला
हमे समझाया
है झूठी ये दुनिया
झूठी है जुबानी
कहूं भी अगर तो
ये राग अलापे
कही धूप छाया
कही बरिस की बूंदे
हे दिनों के दाता
विधाता ही हो तुम।
करू मै अगर कुछ
झकझोरती ये मन है
सहम सी मै जाती
ये छोटी डगर है
हमे समझाओ
हमे कुछ सिखाओ
समय कह रहा है
जरा धैर्य रखलो
तुझे क्या पता है
हमे फिक्र तेरी
ये तेरी तपस्या का
फल मिलकर रहेगा
हे दिनों के दाता
विधाता हो तुम।
है रिश्ते दिखावा
है झूठे है लोग
है तेरी नसीहत पर
करते है भूल
समझाओ इन्हे तू
अभी वक्त बाकी
है दिनों के दाता
विधाता हो तुम।
— विजया लक्ष्मी