भारतीय संस्कृति में दुनिया में सबसे बड़ी
कल जिसे आपने हटाया, वह आपके साथ पुनरावृत्ति कर रहा है। जब इस देश की 14 साल की सफल और सुफल सेवा ‘चरणपादुका’ (चप्पल व खड़ाऊँ) कर सकते हैं, तो किसी को भी कुर्सी की लालच क्यों ? सत्ता चिरस्थायी नहीं होती, जनाब !
सुकार्य और सद्कार्य चिरस्थायी होते हैं । अगर आपने ये दोनों सम्पादित किया है, तो आपके कृतित्व और व्यक्तित्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित होंगे, फिर इतर डरते क्यों हैं, आप! हाथी चले बाज़ार, कुत्ते भूँके हज़ार ! सम्पूर्ण दुनिया में ‘भारतीय सभ्यता और संस्कृति’ की अक्षुण्ण रहस्यवादिता को विदेशी विद्वानों और दुश्मनों ने भी माना।
क्या मेगास्थनीज़, ह्वेनसांग, मेक्समूलर ! तो कामिल बुल्के, रस्किन बांड आदि तो यहीं के रह गए । अल्लामा इक़बाल ने तो कलमतोड़ प्रशंसा किये । जिसतरह से ताज़महल हमारी आन- बान- शान है, तो लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, मुहम्मद रफ़ी भी तो देश के लिए आठवाँ आश्चर्य है।
वह भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम ही हो सकते हैं, जो देश को आजीवन ब्रह्मचर्य रह सबसे मजबूत प्रक्षेपास्त्र दिये, तो अपने साथ गीता और वीणा भी रखे रहे । एक अर्द्धनग्न फकीर ने सत्य -अहिंसा का मंत्र पूरी दुनिया को दिया, जिसे नोबेल सम्मान तो नहीं मिला, किन्तु उनके कार्यों को आगे बढ़ाकर दुनियाभर से 25 से अधिक लोगों को नोबेल सम्मान मिला। इस शख़्स को आइंस्टीन ने सम्मान दिया, तो मार्टिन लूथर किंग ने आत्मसात किया।
ओम पुरी और कैलाश सत्यार्थी को सर्वाधिक विदेशी सम्मान मिले, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदीमय कर दिए । दिनकर जी ने ‘संस्कृति का चार अध्याय’ दिए, तो राहुल सांकृत्यायन ने विदेशों से बटोरकर ज्ञान -सुधा लाये । …और अनंत रश्मियाँ हैं, जिसने ‘भारत’ की सभ्यता और संस्कृति को दुनिया में सर्वोच्चता प्रदान की।
स्वामी विवेकानंद की संस्कृतिलब्धता को कौन तिरोहित कर सकता है ? भगत के एक यही इंकलाब हो सकते थे, सुभाष के ‘जय हिंद’ ! एशिया के नूर ‘रवीन्द्र’ यहीं के ही सकते थे, दूजे के नहीं ! हम भी देश के निर्माण में एक गिलहरी जरूर साबित हो, ऐसी देश की मीमांसा है।