बाहों के घेरे
जब से कामिनी का फोन आया था कि मैं सबकुछ छोड़कर तेरे पास आ रही हूँ, उसके मन में हलचल सी मची थी ।
प्यार ! एक शब्द है ? नहीं नहीं प्यार एक अहसास है, एक भरोसा है,विश्वास है ।
“हे प्रभु ! आज जब मेरा प्यार मेरी बाहों में सिमटने आ रही है तो मैं खुश क्यों नहीं हो पा रहा हूँ ?”
कंचन, संग कामिनी उससे ब्याह करने के लिए अपना घर त्यागकर आ गई। आते ही कामिनी बाहों के घेरे में समा गई ।
स्पर्श विद्रोह पर उतारू हो गया ! अरे ! विवेक यह तुम क्या करने जा रहे हो ? एक स्त्री की आबरू तेरी बाहों में है ।
क्या तुम चोर हो , डाकु हो या लूटेरा हो ? उसके हाथ ढीले पड़ने लगे । नहीं नहीं; कामिनी मेरा प्यार है,मेरी दुनिया है ।
ओह ! यह मैं क्या करने जा रहा था ?
यह भी किसी की संतान है ,जब उन्हें पता चलेगा कि उनकी बेटी प्यार के लिये सारे जीवन की जमापूंजी सामाजिक प्रतिष्ठा सब लेकर चली गई है तो उन पर क्या बीतेगी ?
कामनी बाहों में कितने सुकून से सिमट कर गले से लिपटी है ! कामिनी का भरोसा अपना प्यार आज सब कुछ दाव पर लगा था ।
दिलोदिमाग की जद्दोजहद में किसकी जीत होगी, यह सोचने का वक्त नहीं था । एक टैक्सी बुला कर कामिनी के साथ नये सफर की ओर चल पड़ा ।
कामनी आँखें बंद कर लेट गई । गाड़ी रूकते ही आसपास नज़र दौड़ाई– “अरे ! विवेक यह तुमने क्या किया ?”
विवेक बिना कुछ जवाब दिये उसकी बाहें थाम घर के अंदर कदम बढ़ाया ।
आधी रात में घर के सभी सदस्य जाग रहे थे। सामने विवेक के संग बेटी को देखकर सब समझ में आ गया ।
विवेक उन लोगों से मुखातिब होकर बोला- “माफ किजिए; मैं आपकी अमानत वापस लौटाने आया हुँ । प्यार हमने किया है, फिर आजीवन सजा आप लोग क्यों भुगतें ?”
कहते हुए वह वापस लौटने लगा ।
उसके बढ़ते कदमों को रोकने के लिये कामिनी के माता-पिता ने अपनी बाहें फैला दी– “बेटे दिलोदिमाग की जंग में तुमने हमें हरा कर भी जीत लिया ।”
बाँहों के घेरे में कैद होकर भी मानों पंख लग गये,अहा ! स्पर्श की ताकत में कितना कुछ समाहित है !!!!
— आरती रॉय