लघुकथा

पापा की सीख

मैं ऋषित कक्षा चार का विद्यार्थी। मेरे पापा ने शब्दों उपदेश भाषण सलाह
मार्गदर्शन कर कोई सीख नहीं दी। पहले मैं बहुत छोटा था। लेकिन अब जैसे जैसे
मैं कुछ बड़ा होता जा रहा हूं, तब समझने आने लगा है कि पापा कहते बहुत ही कम
हैं, वे कर के हम को सीख दे रहे हैं। पापा को मैंने दादाजी की सेवा करते देखा।
दादाजी अब नहीं रहे, अब पापा दादी की सेवा कर रहे हैं। दादाजी दादीजी को
होम्योपैथिक दवा दिलवाने ले जाते थे। दादाजी की एक बार ब्लड प्रेशर की दवा
समाप्त हो गई थी। मेडिकल स्टोर वाले से पापा ने उनकी वाली दवा कोटा से मंगवाई।
शिफ्ट ड्यूटी के बाद भी पापा नियम से दोनों को समय देते थे। कुछ महीनों से मैं
देख रहा हूं कि दादाजी के ईश्वर के यहां जाने के बाद दादीजी का पूरा ध्यान रख
रहे हैं। मम्मी को भी स्पष्ट बोल दिया है कि मेरी मम्मी को बस समय देना। इस
फादर्स डे पर पापा से मैने पूछा कि पापा मैं आपको आज क्या गिफ्ट दूं। पापा की
सीख बस इतनी ही थी कि दादीजी की सेवा करो। ऑनलाइन क्लास एवम होमवर्क पूरा करने
के बाद दादीजी से बातें करो, उनका मन बहलाओ, उनसे कुछ सीखो। मैं तुम्हें क्या
सीख दूं, मैं स्वयं ही तुम्हारी दादीजी से कुछ अच्छा सीखने की कोशिश कर रहा
हूं। मम्मी ने किसी काम के लिए मना कर दिया तो पापा से कभी अपनी बात नहीं मनवा
सकता। मम्मी जो निर्णय देती है, वही फाइनल होता है। मेरी परीक्षा के समय पापा
स्वयं भी टी वी नहीं देखते। पापा कह कर नहीं, कर के सीख देते हैं। मैंने अपने
पापा से अभी तक शायद बहुत ही कम सीख ली होगी। लेकिन अब मैं संकल्प लेता हूं कि
जिस प्रकार पापा ने अपने मम्मी पापा की सेवा करी एवम अब वे मेरी दादीजी की जिस
प्रकार सेवा कर रहे हैं, उसी प्रकार मैं भी अपने मम्मी पापा दादीजी की सेवा
करूंगा। मेरी कमजोरी गलती रही कि मैने अपने पापा से कुछ अधिक नहीं सीखा, लेकिन
अब मैं पूरा प्रयास कर अपनी गलती सुधार कर पापा मम्मी दादीजी के जीवन से कुछ
अच्छा सीखकर एक अच्छा इंसान बन कर पापा मम्मी का अच्छा बेटा एवम दादीजी का
अच्छा पोता बन कर अपना जीवन सार्थक करूंगा।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी