सच्चा सुख अध्यात्म है
सच्चा सुख
‘अध्यात्म’ है !
किसी ने
ठीक ही कहा है-
किसी के दिल में
रहते हो
तो घर बनाने की
जरूरत नहीं,
किसी की साँसों में
रहते हो
तो शहर बसाने की
जरूरत नहीं !
हँसते हुए मैंने पाया
मुर्दों के बीच सोया हूँ
और उनकी एक अँगुली
मेरे गुदा से टकरा,
गुदगुदी कर रहा था
जैसे जाना कि मेरी हँसी-
फ़ाख़्ता हो गया ।
अरबिया टोपी
और डॉक्टरी जूते के बीच
सिंगल फेफड़े का
एक आदमी
जो टाई-कोट पहने हैं,
करीने से दाढ़ी सजाये हैं
और अंग्रेज़ी में कहते हैं-
सारे जहाँ से अच्छा….
एक ऑफिसर
सड़क किनारे
एक कोने में बैठे
मोची से अपने जूते
पॉलिश कराते हैं
और उसे
मेहनताना
फेंक कर देते हैं
फिर-
आगे बढ़ते हैं
और धोबी की
इस्त्रालय से
कपड़े आयरन करा,
पैसे देने की
हुज्जत करते हैं
जानते हैं-
वो ऑफिसर्स
महादलित है ।
ऐसा कब आएगा,
जब मंदिर में
अजान हो,
मस्ज़िद में पूजा
और शंख-ध्वनि,
गिरजे में सीताराम,
मरियम गुरद्वारे में ,
तब सुबह होगी ऐसी-
लोग कहेंगे-
‘अस्सलाम श्रीराम
सतश्री गुड मॉर्निंग’ ।