कविता

प्रेम

प्रेम के पथ पर मुझसे, ना चला जाए ।
किसी की याद में, अब ना रोया जाए।।
पल पल राह निहारे , हम दिन रात।
फिर उस पगली से, बात ना हो पाए।।

लिख के खत उन्हें ,कैसे दिया जाए।
काल मेसज से भी, बात ना हो पाए।।
बन्द है कालेज ,और बन्द है ये शहर।
तुम्हारी याद में, पगली हम तड़प जाए।।

मोटी कहे कभी तो ,पगली भी शरमाए।
हँसकर नजरें वो , अपनी ले झुकाए।।
दूर कैसे रह रहे है , हमसे अब वो।
जो हमसे एक पल ,अलग ना रह पाए ।।

लॉकडॉउन की तड़प , भारी हो जाए।
प्रेम की राह जब, कठिन हो जाए।।
ना उसे हम देखे ,और ना वो हमे देखे।
लगे भरी ठंड में , बरसात हो जाए।।

खुला कालेज, चलो हम घूम के आए।
बाइक तुम चलाओ, पीछे हम बैठ जाए।।
कहि खाये पिज्जा बर्गर, और वो कोन।
सामने में फिर ,तुम्हारा भाई दिख जाए।।

प्रेम किये थे आपसे, इस कर्ज को चुकाए।
तुम्हारे घर वालो से, और भाई से पिट जाए।।
सुबह शाम खा लेंगे,मार दवाई की तरह।
बस मुस्कुराते हुए, तुम्हारा दीदार हो जाए।।

— सोमेश देवांगन

सोमेश देवांगन

गोपीबन्द पारा पंडरिया जिला-कबीरधाम (छ.ग.) मो.न.-8962593570