कविता

चांद सितारे

चलो लेके कोई ख्वाब
नींद के आगोश में चलते हैं
चांद तारों से सजी महफिल है
चांद दुल्हा
चांदनी उसकी दुल्हन
बनी है
सितारे
सखा सखी बन
मुस्कुरा रहे हैं
रात भर होगा रतजगा
सुबह डोली उठ जायेगी.

 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020