गीत/नवगीत

कुछ तो है इस देश में

कुछ तो है इस देश में
जो आपस यूं में सब प्यार जताते हैं।
मिट्टी के हर कण कण में राम बताये जाते हैं।
आंखों के आंसू जहां खुशियों में पाये जाते हैं।
गीता के उपदेश जहां युद्ध में गाये जाते हैं।
कुछ तो है इस देश में।।
दुश्मन को गले लगाते हैं पर नही किसी से डरते हैं।
देश के सपूत जो बनकर जो सबके मन बस जाते हैं।
मतभेद तो होता है पर यहां मनभेद न पाये जाते हैं।
कुछ तो है इस देश में।
एक दूजे का पैर खिचते पर मन में राम बताते हैं।
एक दूजे का गला काटकर वसुधैव कुटुम्बकं जताते हैं।
कन्या पूजन करके भी जो बहनों को तकते रहते हैं।
कुछ तो है इस देश में।
सीमा पर कायर बताकर फिल्मों के हीरो मनभाते है।
दिखावे की दुनिया बतलाकर मन की बात छुपाते हैं।
इन्सान शब्द को भूलकर धर्म का पाठ पढाये जाते हैं।
कुछ तो है इस देश में।
कर्म की परिभाषा भाषा में , व्यहार में खोये रहते हैं।
नूतन तन के भक्षक भी यहां सभा में पूजे जाते हैं।
सडक पर युवा भटकते हैं पर आत्मनिर्भर बतलाते हैं।
कुछ तो है इस देश में।
मन की बात मन में है क्यूं भारत को श्रेष्ठ बताते हैं।
पद पद पर यें पद के अभिलाषी ज्ञानधर्म दिखलाते हैं।
अनिल! आज वो अनिल नही यें रामराज बतलाते हैं।
कुछ तो बात है इस देश में।

डॉ. अनिल कुमार

सहायक आचार्य साहित्य विभाग एवं समन्वयक मुक्त स्वाध्यायपीठ, केन्द्रीय संस्कृत विश्वद्यालय श्रीरघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग, उत्तराखण्ड मो.न. 9968115307