लघुकथा

ताकत

अपने माता -पिता तथा मुहल्ले वालों के लिए काफी नम्र रहता था पवन, लेकिन पत्नी गीता के लिए तौबा- तौबा । गीता को ज्ञात था कि पवन मन मे दो कुंठाये पाले बैठा है।पहली , दोनों भाई इंजीनियर हैं और वह क्लर्क, दूसरी तीन बेटियों का बाप।

बेटियों का कक्षा में प्रथम आने पर, सबसे गीता का गुणगान सुनना पवन को झुंझला देता पत्नी का गुण भी पवन को नहीं सुहाता । पिता के क्रोध से तीनों बेटियाँ थरथरातीं , बेटा सिर्फ पांच वर्ष का है, सो पिता का क्रोध सिर्फ खेलते हुए ही देखता।

गीता घर मे बाई भी तब रख पाई, जब डॉक्टर ने चौथे गर्भधारण पर घरेलू काम न करने को कहा, नही तो गीता चकरघिन्नी बनी रहती। ससुर के लिए कम मिर्च की हल्की फुल्की सब्जी, सास के लिए रोज अंकुरित नाश्ता , बच्चों की फरमाइशें तो थी ही उसकी ड्यूटी। ये काम परिवार के लिए थे, जो गीता को नहीं खलते थे, पर पवन के कटु वचन गीता का दिल छलनी करते।

चौथे गर्भ के समय पवन लिंग- परीक्षण करवा कर ही माना। साफ बोल दिया था उसने- “अगर अब की लड़की हुई तो घर से बाहर कर दूंगा।“ गीता इसे सुन भयभीत हो गयी थी, सो चुप रही। चालीस की उम्र में सोलह वर्षीया बेटी के सामने माँ बनना कतई स्वीकार नही था। शर्म आती थी उसे।

आज गीता से लड्डू का डिब्बा नही खुला। बेटियों की भी कोशिश भी नाकाम रही। भयभीत गीता, पवन से बोली- “प्लीज! आप यह डिब्बा खोल दो।”
“खोलता हूँ। इतनी भी ताकत नहीं है कि डिब्बा खोल लो।” पवन रौब जमाते हुए बोला। डिब्बा खुलते ही एक लड्डू उछलकर फर्श पर जा गिरा।

“इस डिब्बे में इतने लड्डू रखने की क्या जरूरत थी? फैल गए न।.. अक्ल हो तब न!”

“पापा ! लड्डू आपने गिराये हैं। मम्मी को सॉरी बोलो… बोलो न सॉरी।Þ बेटे ने कहा और चाबी वाले खिलौने को जमीन पर पटक, पवन की गोद मे चढ़ कर ठुनकने लगा। खिलौना तालियाँ बजा रहा था।

लेकिन तीन बेटियों के बाद पैदा हुआ बेटा , पवन का था। जैसे ही झिझकते हुए पवन ने “सॉरी” बोला। बेटा भी ताली बजाकर खुशी से चहक उठा। गीता को लगा कि घर में एक नई ताकत ने जन्म ले लिया है, जो पवन के क्रोध को काबू करने में सक्षम है।

— दीप्ति सिंह

दीप्ति सिंह

बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)