सामाजिक

मेरा सपना

सपने देखना अच्छी बात है,पर सपने खुली आँखों से देखिए। उन सपनों में आपका विश्वास भी होना चाहिये और पूरा करने की दिशा में आपका जज़्बा भी।
पारिवारिक रुप से जिम्मेदारियों के प्रति मेरा सपना अपने बेटियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाने का है।
मगर सामाजिक रुप से मेरा विचार ‘जीना नहीं जिंदा रहना है’ ।
मेरा सपना है कि जीते जी जो हो सके ,वह तो करुँ, परंतु मृत्योपरांत मेरी आँखे किन्हीं दो व्यक्तियों की अँधेरी जिंदगी में उजाला कर सकें। जिसके लिए मैंनें नेत्रदान का संकल्प किया है।
इसके अलावा मैं अपने मृत शरीर का दान भी करने की इच्छा रखता हूँ, जिससे चिकित्सा शिक्षा में सहयोग हो सके। क्योंकि चिकित्सा जगत में नयी नयी तकनीक , परीक्षण और शोधन के लिए मृत शरीर बहुत कारगर ही नहीं आवश्यक भी है,मगर परंपराओं, अंधविश्वास और अदूरदर्शिता के कारण बहुतेरे निष्कर्ष दम तोड़ देते हैं, जिसका दुष्परिणाम हमें ही नहीं समाज के बहुतेरे लोगों को अपनों को ही खोकर सहना पड़ता है।
इस क्रम में मैं देहदान से संबंधित जानकारियां जुटाने में लगा हूँ।
मेरा सबसे छोटा लेकिन उद्देश्यपूर्ण सपना है कि किसी एक व्यक्ति के होंठों पर यदि मैं कुछ भी करके एक पल की भी खुशी ला सकता हूँ, तो मैं खुद को धन्य समझूंगा।
मेरा संसार के हर व्यक्ति से आग्रह कि अपने और अपने परिवार के अलावा भी किसी भी रुप में किसी एक को तो खुशी देने की इच्छा शक्ति जरूर विकसित कीजिये। समाज ने आपको बहुत कुछ दिया है,देता ही रहेगा, तो आप भी अपनी जिम्मेदारी निभाइए।आप अपने शारीरिक, आर्थिक स्थिति की आड़ में खुद को असहाय न मानिए।निश्चित ही आपके पास वो सब है,जो आप अपने से कमजोर, असहाय और जरूरत मंद को दे सकते हैं। बस इच्छाशक्ति को मजबूत तो कीजिये।आगे तो बढ़िए, किसी का भी इंतज़ार मत कीजिये।
आपके प्रयास से कोई एक व्यक्ति भी यदि एकपल के लिए भी मुस्कुरा दे, तो आपको अपना जीवन धन्य महसूस होने लगेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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