कविता

मान अभिमान

यह विडंबना ही तो है
कि हम मान सम्मान की चिंता में
दुबले हुए जा रहे हैं,
मगर औरों के मान की
नहीं कद्र करना चाह रहे हैं।
इतना तक ही होता तो
कोई बात ही नहीं,
अपने पद, प्रतिष्ठा, संपन्नता ही नहीं
बल के घमंड में उड़े जा रहे हैं
अभिमान के चक्कर में हमें
तनिक ध्यान ही नहीं,
औरों की हँसी ही नहीं
उपहास का पात्र भी बन रहे,
अभिमान की चौखट पर
आज अपना मान भी खो रहे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921