लघुकथा – मंहगाई
आज फिर बढ़ गये गैस के दाम अब आजका खाना कैसे बनेगा। लकड़ी की व्यवस्था तो हो जाएंगी।पर उसके धुएं से मेरा दम ही घुट जाएगा।वोट लेने का समय आते हैं।फिर नहीं आते अपने मुंह दिखाने अरे बेटा मंहगाई आज से नहीं बढ़ी वो तो बहुत दिन हो गए हैं। हां पापा हो तो गये हैं लेकिन उस समय सिलेंडर 900 नहीं चार सौ का आता था।अब तो मुझे वो महंगें दिन लौटा दे कोई बाबू जी के पास कोई ज़बाब नहीं था। उन्होंने मौन हामी भरी ।और इंतजार करने लगे।