भाषा-साहित्य

शोध लेख : महात्मा गांधी और हिंदी भाषा

गांधीजी भाषा के माध्यम से देश को भाषाई एकता के साथ भावनात्मक रूप से, सांस्कृतिक रूप से भाषा की अस्मिता को भारत की आत्मा में प्राण फूंक कर जगाना चाहते थे। बहुसंस्कृति और बहुभाषिकता और बहूधर्मी वाले भारत में अंग्रेज अपनी अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारत को सेंध लगा चुके थे ऐसे समय में गांधी जी ने अपने चिंतन मनन से भाषा संस्कृति की शक्ति को पहचान कर हिंदी भाषा की पेरवी बड़ी शिद्दत के साथ की थी। उन्होंने अपने पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर व अपने भाषणों के माध्यम से हिंदी की हिफाजत की थी।गाँधीजी जानते थे और मानते थे कि भाषा को तोड़ने व जोड़ने से देश की संस्कृति और समाज पर बहुत गहरा असर पड़ता है। भाषाई एकता के माध्यम से गांधीजी पहले देश की  जनता को एकता के सूत्र में बांधना चाहते थे।तभी देश की आजादी का का सपना साकार हो सकता है। अपनी मूल भाषा गुजराती में स्कूली अध्ययन व उच्च शिक्षा अंग्रेजी में होने के बाद भी तथा अपनी आत्मकथा गुजराती में लिखने के बाद भी देश की जनता व बुद्धिजीवी वर्ग को हिंदी की हिमाकत करते हुए उन्होंने आजादी के संग्राम की शुरुआत अपने निजी जीवन में हिंदी भाषा से करने की जोरदार वकालत की थी।
-” दक्षिण अफ्रीका से भारत आने पर गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन और उससे जुड़े किसानों,मजदूरों, स्वदेशी,नशाबंदी जैसे मुद्दों पर देशव्यापी कार्यक्रमों के माध्यम से लोक जागरण और राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया था। इन्हीं आंदोलनों में राष्ट्रभाषा हिंदी का भी प्रश्न था यद्यपि गांधी जी ने भारत आने से पूर्व ही 1910 में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रेरणा से हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हो चुकी थी अदालतों में फारसी की जगह हिंदी के प्रयोग का आंदोलन शुरू हो रहा था लेकिन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के आठवें इंदौर अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा की स्पष्ट व्याख्या की और हिंदी भाषी राज्यों मैं उसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता का जोरदार शब्दों में समर्थन किया उन्होंने कहा था-“हिंदुस्तान को अगर सचमुच एक राष्ट्र बनाना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही बन सकती है।” क्योंकि जो स्थान हिंदी को प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता। प्रत्येक प्रांत में उस प्रांत की भाषा, सारे देश के पारस्परिक व्यवहार के लिए हिंदी और अंतरराष्ट्रीय उपयोग के लिए अंग्रेजी का व्यवहार हो।” उन्होंने उसी इंदौर अधिवेशन से बड़ी दृढ़ता से दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार- प्रसार का प्रस्ताव पारित कराया। वहीं से अपने 18 वर्षीय पुत्र श्री देवदास गांधी तथा स्वामी सत्यदेव को मद्रास (चेन्नई)भेजा। डॉ. एनी बेसेंट की अध्यक्षता में मद्रास महानगर के गोखले हॉल में हिंदी प्रचार का सूत्रपात हुआ। दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी की प्रेरणा से सर्व श्री राम भरोसे श्रीवास्तव,पंडित ब्रजनंदन शर्मा,पं.अवध नंदन, पं. रघुवर दयाल मिश्र,पंडित रामानंद शर्मा,श्री भालचंद्र आप्टे,डॉ.मोटूरी सत्य नारायण, पंडित सिद्धनाथ जैसे अनेक विद्वान कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में हिंदी प्रचार को का निर्माण किया।”1
             गांधीजी  न तो भाषा विशेषज्ञ थे और न ही भाषाविद् और न ही भाषा वैज्ञानिक किंतु एक समाजसेवी राजनेता के रूप में जन हितैषी एवं स्वतंत्रता सेनानी जरूर थे।वे कहते थे कि राष्ट्रभाषा के बिना एक राष्ट्र गूंगा होता है। भारत के संदर्भ में उनका भाषा विषयक मत 1909 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन से 6 वर्ष पूर्व ही हिंद स्वराज में हमें देखने को मिल जाता है। जिसमें वे लिखते हैं सारे हिंदुस्तान के लिए जो भाषा चाहिए वह तो हिंदी होनी चाहिए। गांधीजी का स्पष्ट मत था कि हिंदुस्तान यदि एक राष्ट्र है तो उसकी एक ही राष्ट्रीय लिपि होगी।”2
          आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी ने देश के पत्रकारों संपादकों और प्रकाशकों को हिंदी भाषा को अपनाने तथा इसका प्रचार प्रसार के लिए जोड़ा और उन पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा था उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, बाबूराव विष्णु पराड़कर, लक्ष्मण नारायण गर्दे,अंबिका प्रसाद वाजपेई, आदि प्रमुख थे। गांधी जी ने स्वराज, स्वदेशी, स्वावलंबन, नैतिकता, अस्पृश्यता,  राष्ट्रीयता,ग्राम स्वराज, महिला जागरण जैसे स्वाधीनता की बुनियाद में चलाए जा रहे आंदोलन में भाषा और लिपि के प्रश्नों को राष्ट्रभाषा और राष्ट्र लिपि के रूप में हिंदी को राष्ट्रभाषा और देवनागरी लिपि के हेतु संकल्पित होकर कार्य किया था।
“गांधी जी ने टैगोर और तिलक को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया।”3.
          हिंदी भाषा के लिए गांधीजी अपने भाषणों में अनेक बार लेखों में बोलते रहे और लिखते रहे तथा अपने हिन्दी के लिए भाषा नीतियां बनाते रहे तथा हिन्दी भाषा को अस्त्र बनाकर राष्ट्र को मजबूत करने के लिए आजादी का विशाल आंदोलन खड़ा किया राष्ट्र यज्ञ में तन-मन से  जुट गए थे। उन्होंने हिंदी भाषा को लेकर लाखों बार लाखों लोगों को समझाने व सिखाने का भरसक प्रयास किया।
       -“हिन्दी को लेकर महात्मा गांधी का दृढ़ संकल्प उनकी पुस्तक ‘मेरे सपनों का भारत’ में भी व्यक्त हुआ है। उनके शब्दों में अगर मेरे हाथ में तानाशाही सत्ता हो तो मैं आज ही से विदेशी भाषा के जरिए अपने लड़कों और लड़कियों की शिक्षा बंद कर दूं और सारे शिक्षकों और प्रोफेसरों से यह माध्यम तुरंत बदलवा दूंँ या उन्हें बर्खास्त कर दूंँ मैं पाठ्य पुस्तकों की तैयारी का इंतजार नहीं करूंगा। वह माध्यम यह परिवर्तन के पीछे चली आएगी।”4.
              इंदौर के दूसरे अधिवेशन तक देशव्यापी माहौल : 20 अप्रैल 1935 को हिंदी साहित्य सम्मेलन में ही चौबीसवें अधिवेशन की अध्यक्षता इंदौर नगर में ही  महात्मा गांधी ने की थी।उस अधिवेशन में उन्होंने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रयासों का विस्तार से उल्लेख किया।17 वर्षों में दक्षिण भारत के केंद्रों से 6लाख से अधिक लोगों ने हिंदी में प्रवेश लिया था। 450 केंद्रों में प्रचार कार्य के लिए 600 शिक्षक तैयार किए गए थे। महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत और पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं की समृद्धता और संपन्नता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था,” इन समृद्ध भाषाओं से शब्द ग्रहण कर हिंदी शब्द भंडार को अधिक समृद्ध बनाना चाहिए। ये भाषाएँ संपन्न जरूर है लेकिन यह राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। राष्ट्रभाषा तो केवल हिंदी ही बन सकती है।”5.
           आजादी के पहले महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा के बारे में चिंता करते हुए तथा अंग्रेजी भाषा की वजह से देश को नुकसान होने पर  उन्होंने यह कहा था -“जो स्थान इस समय अनुचित ढंग से अंग्रेजी भाषा भोग रही है वह स्थान हिंदी को मिलना चाहिए।इस विषय में मतभेद होने का कारण न होने पर भी मतभेद होगा, दुर्भाग्य की बात है। शिक्षित वर्ग एक भाषा अवश्य होनी चाहिए और वह हिंदी ही हो सकती है।हिंदी द्वारा करोड़ों व्यक्तियों में आसानी से काम किया जा सकता है। इसलिए उसे उचित स्थान मिलने में जितनी देर हो रही है, उतना ही देश को नुकसान हो रहा है।” “यह मेरा निश्चित मत है कि आज की अंग्रेजी ने शिक्षित भारतीयों को निर्बल और शक्ति हीन बना दिया है…. इससे भारतीय विद्यार्थियों की शक्ति पर भारी बोझ डाला है कोई भी देश नकल क्यों की जाती पैदा करके राष्ट्र नहीं बन सकता।”-7
            हिंदी भाषा में वे सारे गुण को देखते हुए महात्मा गांधी ने उस समय ही कह दिया था सचमुच में समूचे हिंदुस्तान के साथ व्यवहार करने के लिए हमको भारतीय भाषाओं में से एक ऐसी भाषा या ज़बान की जरूरत है,जिसे आज ज्यादा तादाद में लोग जानते और समझते हों और बाकी लोग जिसे झट सीख सकें। इसमें शक नहीं कि हिन्दी ऐसी ही भाषा है। उत्तर के हिंदू और मुसलमान- दोनों इस भाषा को बोलते और समझते हैं।”8.
         गांधीजी भाषा को लेकर बहुत सजग हो गए थे। और अंग्रेजों की कुटिल चालों को भी समझ गए थे।जिस हेतु वह अपने राष्ट्र की सर्व गुण संपन्न भाषा को अपनाने का संकल्प ले चुके थे।
                  “हिंद स्वराज में लिखा था मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी। करोड़ों लोगों को अंग्रेजी शिक्षा देना, उन्हें गुना में डालने जैसा है।… अंग्रेजी शिक्षा को लेकर हमने अपनी राष्ट्रभाषा को गुलाम बनाया है।” 9.
 गांधी जी यह जानते थे की अंग्रेजी से हमारे राष्ट्र का भला नहीं हो सकता अतः हमारी भाषा हमारी जनता का कल्याण कर सकती है। अंग्रेजी तो अंग्रेजों की भाषा है जो हम पर राज करती है और हुकूमत चलाती है।
  ” अंग्रेजी शिक्षा के कारण शिक्षित एवं शिक्षकों के बीच कोई सहानुभूति कोई संवाद नहीं है शिक्षित समुदाय अशिक्षित समुदाय के दिल की धड़कन को महसूस करने में असमर्थ है।”-10
   गांधी जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना समारोह में हिंदी भाषा को लेकर एक ऐतिहासिक भाषण दिया जो उनका  विदेश से आगमन के बाद भारत में यह उनका पहला सार्वजनिक भाषण था जिसमें उन्होंने कहा था-
” इस महान् विद्या पीठ के प्रांगण में अपने ही देशवासियों से अंग्रेजी में बोलना पड़े यह अत्यंत प्रतिष्ठा विहीन और लज्जा की बात है। मुझे आशा है कि इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने का प्रयास किया जाएगा हमारी भाषा हमारा ही प्रतिबिंब है और इसलिए यदि आप मुझसे यह कहे कि हमारी भाषाओं में उत्तम विचार व्यक्त अभिव्यक्त कर किए ही नहीं जा सकते तब तो हमारा संसार से उठ जाना ही अच्छा है क्या कोई व्यक्ति स्वप्न में भी यह सोच सकता है कि अंग्रेजी भविष्य में किसी भी दिन भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है फिर राष्ट्र के पाओं में यह बीड़ी किस लिए यदि हमें पिछले 50 वर्षों में देसी भाषा के द्वारा शिक्षा दी गई होती तो आज हम किस स्थिति में होते हमारे पास एक आजाद भारत होता हमारे पास अपने शिक्षित आदमी होते जो अपनी ही भूमि में विदेशी जैसे ना रहे होते बल्कि जिनका बोलना जनता की ह्रदय पर प्रभाव डालता।” 11
          गांधी जी ने ने हिंदी भाषा को संपूर्ण भारतीयों की धड़कन की भाषा माना था जिसमें गरीब अमीर मजदूर किसान सबके लिए एकरूपता से जोड़ने वाली भाषा का सपना संजोया था जो आज भी हमारे लिए अधूरा ही प्रतीत हो रहा है।
 गांधीजी भारत के लिए हिंदी को ही राष्ट्रभाषा की हिमाकत करते थे ।वे कहते थे-” समूचे हिंदुस्तान के साथ व्यवहार करने के लिए हमको हमारी भाषाओं में से एक ऐसी जबान की जरूरत है जिसे अधिक से अधिक संख्या में लोग जानते और बोलते हैं और जो सीखने में सुगम हो। इसमें शक नहीं कि हिन्दी ही ऐसी भाषा है।”12.
                   गांधीजी की दूरदृष्टि और भविष्यवाणी उस जमाने में भी कितनी सार्थक थी जिन्होंने सीना ठोक कर और बुलंद आवाज में हिंदी की वकालत करते हुए यह बात कही थी -“अगर हिंदुस्तान को एक राष्ट्रभाषा बनाना है तो चाहे कोई माने या ना माने राष्ट्रभाषा हिंदी ही बन सकती है। क्योंकि हिंदी को जो स्थान प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को नहीं मिल सकता।अगर स्वराज करोड़ों निरीक्षकों का, दलितों और अंत्यजों का हो और हम सब के लिए हो तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।”13.
  गांधीजी मूलतः गुजराती भाषी होकर भी  सरल सहज हिंदी भाषा बोलते थे और लिखते थे। गांधीजी का अनुभव और चिंतन भाषा के लिए आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। गांधी भाषा के लिए दूर दृष्टा थे जिन्होंने अपनी मातृभाषा की रक्षा करने की बात भी कही तो हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित  समृद्ध  और मजबूत करने की बात भी अपने अनुभव और व्यवहारिक ढंग से कर  हिंदी की प्रगति  करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
              गांधीजी को हिंदी के प्रति कितना प्यार था यह बात इस बात से ज्ञात होती है कि उन्होंने कहा था-“ईश्वर को तो दूसरी ही बात करनी थी। उसे मेरे मार्फत हिंदी प्रचार की कुछ और सेवा लेनी थी।”-14.
           गांधी जी ने कहा था हिन्दी मीठी, नम्र और ओजस्वी भाषा है। अंग्रेजी की शिक्षा देना गुलामी में डालने जैसा है। अंग्रेजी में बोलना हमारे लिए शर्म की बात है। वे अंग्रेजी बोलना कितना पश्चाताप की तरह महसूस करते थे-” मैं गुजरात से आता हूं। मेरी हिन्दी टूटी-फूटी है। मैं आप सब भाइयों से टूटी-फूटी हिंदी में बोलता हूं, क्योंकि थोड़ी अंग्रेजी बोलने  में भी मुझे तो ऐसा मालूम पड़ता है, मानों मुझे इससे पाप लगता है।15.”
               महात्मा गांधी के इस वक्तव्य से पता चलता है कि वे हिंदी से वह कितना प्यार करते थे।  कि  बडे-बड़े कांग्रेस के नेता और मित्रों को भी हिंदी की हिमायत करते हुए कहने से नहीं चूकते थे -” लोकमान्य तिलक यदि हिंदी में बोलते तो बड़ा लाभ होता। लॉर्ड डफरिन तथा लेडी चेैम्सफोर्ड की भांति लोकमान्य तिलक को भी हिंदी सीखने का प्रयत्न करना चाहिए। रानी विक्टोरिया ने भी हिंदी सीखी थी। पंडित मालवीय जी से मेरी अर्जी है कि यदि वे कोशिश कर दे तो अगले वर्ष अन्य किसी भी भाषा में कांग्रेस के व्याख्यान न हों। मेरा यह झगड़ा है कि कल वे कांग्रेस में हिंदी में क्यों नहीं बोले?।”16.
       वे कहते थे अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी सीखना बहुत सरल है अंग्रेजी से मानसिक शक्ति का ह्रास होता है। उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों से भी अंग्रेजी में नहीं बोले। आजादी के लेकर देशवासियों से कहते थे कि हिंदी के बिना हमारा स्वराज भी निरर्थक है। इस देश का भला तभी होगा जब हम सभी हिंदी और केवल हिंदी ही को हमारी राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाएंगे। उन्होंने हिंदू मुस्लिम की भाषाओं के विवाद को खत्म करते हुए यह कहा था -“मैं यह कहता आया हूं कि राष्ट्रीय भाषा एक होनी चाहिए और वह हिंदी होनी चाहिए। मैंने सुना है कि इस संबंध में कई मुसलमान बंधुओं के मन में गलतफहमी है। उनमें बहुतेरों का खयाल है कि हिंदी होनी चाहिए, यह कहकर में उर्दू का विरोध करता हूं। हिंदी भाषा से मेरा मतलब उस  भाषा से है, जिसे उत्तर भारत में हिंदू और मुसलमान दोनों बोलते हैं और जो नागरी तथा उर्दू लिपि में लिखी जाती है। उर्दू के लिए मेरे मन में कोई द्वेष नहीं है। मेरी तो यह मान्यता है कि दोनों भाषा एक ही है। मेरे ख्याल से तो दोनों भाषाओं का गठन,दोनों का ढंग, संस्कृत और अरबी शब्दों के भेद को छोड़कर एक ही प्रकार का है।मेरा झगड़ा तो अंग्रेजी के विरुद्ध है….।”17
 उन्होंने अपने अखबार नवजीवन में दिनांक 238 1928 को यह लिखा था कि संसार में हिंदी भाषा का तीसरा स्थान है तथा उसमें प्रांतीय भाषाओं को महत्त्व देते हुए उसकी हिमाकत की थी-“जो बात मैंने अनेक बार कही है, उसे यहां फिर दोहराता हूं कि मैं हिंदी के जरिए प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता,किंतु उनके साथ जिन हिंदी को भी मिला देना चाहता हूं,जिससे एक प्रांत दूसरे के साथ अपना सजीव संबंध जोड़ सकें।इससे प्रांतीय भाषाओं के साथ हिंदी की भी श्री- वृद्धि होगी। 18
          गांधी जी बार-बार कहते थे अंग्रेजी जितनी कठिन है हिंदी उतनी सरल है अंग्रेजी का वशीकरण राष्ट्र की आत्मा को ही नष्ट कर देगा है वह ऐसा मानते थे की हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने में बालक को 10 वर्ष लगते हैं वही अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने में बालों को 16 वर्ष का समय लग जाता है। उन्होंने नेहरू जी को लिखा की गरीबों के लिए हिंदी में लिखो। सरोजिनी नायडू को हिंदी में भाषण करने की प्रेरणा दी थी।
          आजादी के समय हिंदू मुस्लिम के सांप्रदायिक दंगों  को बुझाने हेतु कहा था-” हिंदी और उर्दू नदिया हैं और हिंदुस्तानी सागर।
 दोनों बहनों को आपस में झगड़ा नहीं करना है मुकाबला तो अंग्रेजी से है।”19
अंत में  यही कहा जाएगा कि आज गांधी की आत्मा भी यही कहती है कि जिस सपने को संजोकर मैंने राष्ट्र भाषा के रुप में हिंदी की पैरवी की थी वह हिंदी आज भी प्रतिष्ठा के रूप में विश्व के पटल को छू रही है। किंतु अपने ही घर में राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त करने हेतु वंचित है। यह सवाल गांधी जी की आत्मा को भी कोस रहा होगा! गांधीजी युग दृष्टा थे जिन्होंने मानसिक आजादी को प्राप्त करने के लिए हिंदी भाषा को अपना हथियार बनाया। उन्होंने उस जमाने में भाषा के लिए जो संघर्ष किया वह वाकई में लाज़वाब था। वह नीव का का पत्थर था। आज हिंदी विश्व के क्षितिज को छू रही है। हिंदी भाषा के आंदोलन के रूप में गांधीजी का सपना साकार हुआ है। आज सोशल मीडिया पर हिन्दी अपना परचम लहरा रही है।चीनी भाषा मंदारीन को भी पीछे छोड़ निकली हे। इसमें स्पष्ट हमें गांधी की दूरदृष्टि एवं भविष्यवाणी की सार्थकता लिए हुए हमारा मार्ग प्रशस्त कर रही है। धीरे-धीरे हिंदी अब रोजगार की भाषा बन रही है। अब हिंदी सोने रूपी आभूषण से भारत माता को सजा रही है।
•संदर्भ सूची•
1.  मिश्र,डॉ.अच्युतानंद, ‘महात्मा गांधी हिंदी पत्रकारिता’ (आलेख), सोच विचार साहित्य पारिवारिक (मासिकी),मिश्र,डॉ. जितेंद्र नाथ (प्रधान संपादक), वाराणसी (स्थान)प्रकाशन वर्ष जून 2020,अंक 12 ,पृष्ठ संख्या 28
2. मंजूल, दीपक-‘एक भाषा एक लिपि : विचार चिंतन की प्रासंगिकता'(लेख), राजस्थान सुजस (मासिक) [पुस्तक],07 (अंक), सूचना एवं जनसंपर्क विभाग सचिवालय परिसर जयपुर (प्रकाशक),अक्टूबर 2019 (प्रकाशन वर्ष),पृष्ठ संख्या 18
3.वही19
4.वही19
5.वही20
6.पाण्डेय, डॉ.रामशकल (लेखक), ‘भाषा नीति और भाषा के विविध रूप'(लेख), हिंदी शिक्षण (पुस्तक), श्री विनोद पुस्तक मंदिर डॉ.रांगेय राघव मार्ग,आगरा-02दो (प्रकाशक),2009 (वर्ष) पृ.सं. 02
7. वही-02
8. वही-03
9.मंजूल, दीपक ‘एक भाषा एक लिपि : विचार चिंतन की प्रासंगिकता…19
10. मिस्र, प्रोफेसर चितरंजन, ‘महात्मा गांधी की भाषा दृष्टि'(आलेख) सोच विचार साहित्यिक परिवार मासिकी(पुस्तक), पृष्ठ संख्या 30
11.वही 30
12. सिंह,प्रोफेसर दिलीप, ‘महात्मा गांधी का भाषा चिंतन’ (आलेख), सोच विचार   साहित्य परिवार मासिकी… पृष्ठ संख्या 33
13. वही 33
14.मिश्र,डॉ.,अच्युतानंद…पृ. संख्या पृष्ठ संख्या 28
15.रावत, रमेश (संपादक), “गांधी जी का भाषा विमर्श”(पुस्तक), विजय पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रकाशक), 2012 (संस्करण), पृष्ठ संख्या 18
16.वही पृष्ठ संख्या 19
17.वही पृष्ठ संख्या 42
 18.वही पृष्ठ संख्या 80
19 .वही भूमिका से।
 
— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773