कविता

गुमान

तन पर इतना गुमान ना करना
एक दिन तेरा गुरूर टुट जायेगा
माटी का बना है यह तन
माटी में ही मिल जायेगा

कितना भी साबुन से धो डोलो
अंदर की गंदगी ना धुल पायेगा
मन को शुद्ध पहले करना तब
तन भी शुद्ध हो जायेगा

त्वचा के अन्दर का नजारा
तुँ सहज ना देख पायेगा
अन्दर तो गंदगी भरा पड़ा है
तन कैसे शद्ध हो जायेगा

रे मानव किस बात की गुमान है
कुछ भी तेरे साथ ना जायेगा
सब संपदा की धरती है मालिक
धरती पर ही रह जायेगा

चाँद रहेगा तारे भी रहेगें
सूरज भी जग में दिखलायेगा
पर तेरा यह तन मिट्टी का
मिट्टी में ही मिल जायेगा ।

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088