कविता

बेटी ने तुम्हें पुकारा है

बर्बर है जर्जर है हालत नासाज़ है,
चिल्लाती काँपती लहूलुहान
आवाज है।
तड़प, झिड़प किसी को न
गवांरा है,
एक पीड़ित बेटी ने फिर तुम्हें पुकारा है।
तोड़ो मरोड़ो साक्ष्यों को दो मिटा,
अभी बताया नहीं,
हाल देखो उसने कबसे कुछ
खाया नहीं।
जूझती रही, रोती रही,

सिसकती रही,
गिड़गिड़ाई उनके सामने
बिलखती रही,
ये ही सिस्टम है,
है क्या इसके सिवा,
कैसे, कब, कहाँ क्या हुआ
लाचार, लुटा संसार तड़पती रही,
हैवानों की हैवानियत बरसती रही।

— अनीता विश्वकर्मा

अनीता विश्वकर्मा

अध्यापिका, पीलीभीत-उत्तर प्रदेश, 7983333497