कविता

पतझड़

पतझड़ का आया है मौसम
पत्तियों का अस्तित्व टूट कर
 है धरा पर बिखर सा रहा
पतझड़ के मौसम का आना
फूल-पत्तों का नीचे गिरना
दे जाता हमें यह संदेश
आत्मा परमात्मा का है मेल
गिरते पत्तों के ही समान
आत्मा बदलती है नए वस्त्र
बहार आकर देती है दस्तक
क्यों होता है व्यथित तू प्राणी
पतझड़ की यही है कहानी
प्रकृति का यह है अद्भुत नियम
मौसमों का यहाँ आना -जाना
जन्म -मरण का है यह खेल
आवागमन का है यह चक्कर
पतझड़ आई तो क्या हुआ
बहार भी तो आएगी यहाँ
पतझड से मुंह न मोड़ो
प्रकृति से तुम नाता जोड़ो
समझ लो जीवन की कहानी
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333