हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – नारद जी संदेश लाए हैं!

इधर एक सप्ताह से अधिक समय हो गया ,ब्रह्मलोक में देव ऋषि नारद जी का पदार्पण नहीं हुआ था।यह विचार करते हुए प्रजापिता ब्रह्मा जी कुछ अनमने और उदासीन भाव से उद्विग्न मन बैठे हुए थे।इतने में ही क्या देखते हैं कि विधाता पुत्र नारद जी वीणा की मधुर ध्वनि का गुंजार और नारायण हरि! नारायण हरि!! का कीर्तन करते हुए उनके कक्ष_ में आ_ उपस्थित हुए । उनका शुभ- आगमन देखकर ब्रह्मा जी के मस्तक से चिंता की रेखाएँ क्षण भर में विलीन हो गईं और चेहरा और युगल नयन नव विकसित प्रातः कालीन अरविंद पुष्पवत खिल उठे। औपचारिक नमन – वंदन और कुशल – क्षेम के उपरांत पिता- पुत्र में विचारों का आदान – प्रदान कुछ इस प्रकार हुआ।

ब्रह्मा जी : अरे पुत्र नारद !तुम विगत एक सप्ताह से कहाँ चले गए थे ? मैं बहुत ही चिंतित हो गया था। लोक-परलोक के शुभ समाचार बताओ कि कहाँ क्या हो रहा है?

नारद जी: जी पिता श्री ! आपने सही सोचा।विगत एक सप्ताह से मैं पृथ्वी लोक में स्थित देश भारत ; जिसे अतीत में पहले जम्बू द्वीप और तत्पश्चात आर्यावर्त कहा गया है ; के पद – भ्रमण पर था।वैसे मेरे लिए यह कोई बहुत बड़ा देश नहीं है, किंतु वहाँ के निवासियों के लिए बहुत ही विशाल और व्यापक है। क्योंकि वहाँ के लोग इतने आलसी ,प्रमादी और अशक्त हैं कि उन्हें पाँच सौ मीटर तक सब्जी लाने भर की शक्ति उनके पैरों में नहीं है। उनके युवा तो इतने अशक्त ,शिथिल, शुष्क , हीन और क्षीण बल हैं कि इतने से काम के लिए लौह – अश्वों, जिन्हें वे अपनी भाषा में मोटर साईकिल कहते हैं ; का सहारा लेते हैं।

ब्रह्मा जी : किसी देश की युवा पीढ़ी की ऐसी दशा निश्चित ही चिंतनीय है पुत्र! उस देश की जनता और शासन प्रशासन की क्या दशा है ? सब कुछ सकुशल, व्यवस्थित औऱ सुरक्षित तो है !

नारद जी: ऐसा ही तो नहीं है ।तभी तो मुझे इतना भ्रमण करना पड़ा और आपके दर्शन करने के लिए इतना विलम्ब हुआ। वहाँ की दारुण दशा देखी नहीं जाती।

ब्रह्मा जी : पुत्र नारद ! स्पष्ट रूप से खोलकर बताएँ।

नारद जी : समाज, सियासत, शिक्षा, शासन, प्रशासन ,कर्मचारी,राजस्व अधिकारी, पुलिस, व्यापारी – कहीं भी देखिए ; सब के सब ही अर्थ के लोभी जन ,येन – केन- प्रकारेण ; अर्थ को लूटने में लगे हुए हैं। नीति अनीति ,सुनीति कुनीति , चरित्र आदि सब कुछ अर्थार्जन के दाँव पर लगा हुआ है।

ब्रह्मा जी: बहुत बुरा हाल है। अति निंदनीय है।

नारद जी : यह तो कुछ भी नहीं पिताश्री ।अभी और भी सुनिए। वहाँ पर सबसे हास्यास्पद बात ये है कि जिसे जिस कार्य का दायित्व सौंपा गया है ,उसे छोड़कर वह सब कुछ कर रहा है ;जिसे उसे नहीं करना चाहिए।दूसरों के दोष- दर्शन, उनमें कमियाँ ढूँढना, कीचड़ उछाल कर सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयास करना, अपने गले में न झाँक कर दूसरों के बैडरूम ,बाथरूम में कैमरा स्थापन करके उसका आनन्द उठाना,हत्यारे,गबनकर्ता, अपहरण के अनुभवी लोगों को शासन की बागडोर सौंपना जैसे अनेक अनैतिक कार्य साधारण बात है।

ब्रह्मा जी: लेकिन शासन की बागडोर जिन लोगों के हाथ में है? वे कैसे चरित्र के लोग हैं? विस्तार से बताइए।

नारद जी : पिता श्री ! यह आपने कैसा प्रश्न पूछ लिया! इसका उत्तर भी बहुत टेढ़ा है।

ब्रह्मा जी: वह कैसे?

नारद जी: वह इस तरह कि नेता के हाथ में पूरे देश का विकास और विनाश होता है। पर यहाँ पर तो ‘यथा राजा तथा प्रजा ‘ वाली कहावत भी कुछ इस तरह हो गई है कि ‘यथा प्रजा तथा राजा।’ प्रजा में रहकर दुष्कर्मां का अनुभव प्राप्त लोग ही उनके नियामक औऱ संवाहक हैं। फिर प्रजा औऱ राजा में भेद ही क्या रह गया? वही खेले- खाए और दुष्कर्मा ही सब कुछ हथियाए बैठे हैं ।

ब्रह्मा जी : अर्थात !

नारद जी: अर्थात ….नैतिकता खूँटी पर टाँग दी गई है ,जो अपनी टाँगों को आसमान में टाँगे हुए देश के तांगे को हाँक रही है।जो व्यक्ति पढ़ने-लिखने में फ़िसड्डी ,दुराचारी ,लफ़ंगा, गुंडा, व्यभिचारी, आवारा , अपराधों में सिरमौर, नियम कानून को नहीं मानने वाला , प्रायः कानून को तोड़कर अपनी हेकड़ी में प्रशासन की धज्जियाँ उड़ाने में पटु जैसे अनेक प्रकार के रंग – बिरंगे सर्व गुणों से सम्पन्न होता है, वही नेता बनता है और आगे जाकर प्रान्त औऱ राष्ट्रीय स्तर के पदों को सुशोभित करता हुआ अपने परिवार,जाति औऱ तिजोरी को प्राथमिकता देता है।उसके लिए देश की जनता घास- कूड़े से अधिक कुछ भी नहीं है। उसकी झोपड़ी, छानी – छप्पर और टूटी खटिया कुछ ही वर्षों में महलों में बदल जाते हैं ।फ़टी धोती हजारों की साड़ी में बदल जाती है। कमरों में नोट इस प्रकार भरे जाते हैं ,जैसे पहले भैंसों के लिए भूसा भरा करते थे। ईमानदारी और पारदर्शिता के नाम पर अर्थार्जन का खुला खेल चलता है। आम जनता को आम के रस की तरह चूसना ही उसका प्रमुख लक्ष्य होता है।नेता करोड़ों में खरीदे बेचे जाते हैं। भ्रष्टाचार को बढ़ावा और अपनी छत्रछाया में फलने -फूलने का काम इन्हीं के द्वारा सम्पन्न होता है।जातिवाद के जहर से जनता की हत्या की जाती है।

देश की सारी राजनीति जातियों के मजबूत कंधों पर टिकी हुई है।येन-केन-प्रकारेण सत्ता को हथियाना सभी दलों का प्रमुख एजेंडा होता है। कोई व्यक्ति ,नेता या दल दूध का धोया नहीं है। यद्यपि वह स्वयं को घोषित यही करता है।मियां मिट्ठू बनना इनका प्रमुख गुण है। “केवल हम ही श्रेष्ठ हैं ,शेष सभी चोर हैं।” यह उनकी प्रथम घोषणा है। विकास आँकड़ों में दौड़ता है। अखबारों की सुर्खियों से जनता की वाहवाही लूटी जाती है। उनके अंधे भक्त औऱ चमचे झूठे वीडियो बनाकर उन्हें आसमान पर बैठाने में पारंगत हैं। इसी बात के विज्ञापनों पर करोड़ों फूँक दिए जाते हैं।

ब्रह्मा जी: बस ! बस!! अब सुना नहीं जाता।साक्षात कलयुग उतर आया है। ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ इसी को कहा जाता है। अब इस देश के लोगों औऱ उनके तथाकथित ऊपर वालों का भविष्य मेरे अधिकार क्षेत्र से भी बाहर हो चुका है।बस इतना ही कहा जा सकता है कि इन सबको सद्बुद्धि मिले, ताकि भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रह सके। देश के कर्णधार ही ऐसे हैं , तो लुटिया तो डूब ही चुकी है। तथापि मुझे तो यही कहना है: ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाक भवेत।’

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040