गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नफ़रत की है तलब न किसी ख़्वार की तलब ।

इंसां को है ज़रूरी फ़क़त प्यार की तलब ।।1

आएंगे बार बार वो दीवाने हुस्न के ।
होगी जिन्हें यूँ आपके दीदार की तलब ।।2

पहले जुनून ए इश्क़ में पागल तो हो के देख ।
पूछेंगे लोग तब कहीं बीमार की तलब ।।3

बिकता रहा जो मीडिया ऐसे यहाँ ऐ दोस्त ।
जिंदा नहीं रहेगी ये अखबार की तलब ।।4

दिन रात झूठ बोलते नेता जी बेहिसाब ।
कितना गिरेगी और ये अधिकार की तलब ।।5

जीना मुहाल हो गया है तब से ऐ हुजूर ।
महंगाई जब से हो गयी सरकार की तलब ।।6

दो वक्त की हों रोटियां कुनबे के वास्ते ।
इतनी ही बच सकी यहाँ लाचार की तलब ।।7

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com