सरस्वती वंदना
नमामि मातु शारदे !
नमामि मातु शारदे !
है कल्पना मलीन सी , हृदय के भाव मंद हैं।
है लेखनी थकी हुई, सृजन के कार्य बंद हैं ।
मैं धूप में थका पथिक , मलय सनी बयार दे !
नमामि मातु……..
मेरा भविष्य फंस गया शनीचरों के बीच में।
मैं एक साधु सा डरा, तमीचरों के बीच में ।
भँवर में नाव है मेरी ,माँ तू इसे निकार दे !
नमामि मातु………..
मैं नित्य मातु घुल रहा ,ये मन बहुत उदास है।
है जिंदगी अमा हुई ,कहीं नही उजास है ।
हैं ज्योतिपुंज दृग तेरे ,इधर भी माँ निहार दे !
नमामि मातु……………..
हैं आसुओं से घिर गया ,विकल तेरा ये लाल है।
है चोट वक्त की कठिन , ये पीर भी कराल है ।
माँ एक बार इस अभागे लाल को दुलार दे !
नमामि मातु………………….
—————-© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी