गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

झूठ भी सच पर भारी है, यह कैसी लाचारी है।

सूरज को ललकारे है, जुगनू की मक्कारी है।

उसकी बातों में ना आ, वो तलवार दोधारी है।

इक पल उसको सोचा था, अब तक एक ख़ुमारी है।

प्यार उसी से है लेकिन कहने में दुश्वारी है।

धीरे धीरे बोल ज़रा, माँ की पहरेदारी है।

देख पपीहा बोल रहा, बारिश की तैयारी है।

— नमिता राकेश