गीतिका/ग़ज़ल

जल्दी सो जाता हूँ जगाने के लिये आ

फर्ज मोहब्बत का दिल से निभाने के लिए आ
हँसने लगा हूँ अब मुझको रुलाने के लिये आ

बहुत नुकशान हो रहा है गीत गजलों का मेरा
मैं जल्दी सो जाता हूँ मुझे जगाने के लिये आ

मैं नही कहता उन मनुहार भरी बातों की जाँ
दुश्मनी है तो मेरा दिल तू दुखाने के लिए आ

मुझसे रिश्ता नही है तो डरती क्यो हो तुम ?
दुनियाँ की रस्मो को ही निभाने के लिए आ

नींद आ जाती है जाँ नींद की गोलियों के बिन
एक पत्ता रख्खा है तू यार सताने के लिए आ

जानता हूँ तेरे दिल में वैसा कुछ भी नही सुकूँ
पर दिल तो बच्चा है इसे बहलाने के लिए आ

कुछ तो भृम बरकरार रख मोहब्बत का जान
एक बार कम से कम मुझे मनाने के लिये आ

मर गया हूँ ये सांसे धड़कन तो सिर्फ फरेब है

अब झूठी ही सही मोहब्बत दिखाने के लिए आ

बहुत याद आती है तेरी तुझे देखने का मन है
कुछ तो रिश्ता था अपना जलाने के लिए आ

इतना भी गुस्सा ठीक नही भोली लड़की सुन
अगर फिर भी खफा है तो जमाने के लिए आ

एक हादसे में बच गया है ऋषभ तो क्या हुआ
तू आ मुझे फिर से छोड़कर जाने के लिए आ

— ऋषभ तोमर

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना