एक परिवार में दो प्यारे बच्चे। मां-बाप उनकेे थे बहुत अच्छे।।
मां की ममता, बाप का प्यार। मिलता दोनों को सदाबहार।।
लेकिन, आदत में दोनों का अंतर। खेलते आंगन कभी घर अंदर।।
एक सरारती तो दूजा अच्छा। एक नटखटी तो दूजा सच्चा।।
कहता मां से सरारती बच्चा। पढ़ना-लिखना नहीं लगता अच्छा।।
मां बच्चे को प्यार से समझाती। पढ़े-लिखे की महिमा बताती।।
सुन कर मां का वह कहना। मान लेता अच्छे काम करना।।
पढ़-लिख वह आगे बढ़ता। सदा देश हित में काम करता।।
दूजा बच्चा सदा ही सच्चा। सद्मार्ग पर चलता ही रहता।।
बनकर शिक्षक ज्ञान बढ़ाता। मां-बाप का सम्मान बढ़ाता।।
प्यारे बच्चों की यह कहानी। सुनी आपने हमारी जुबानी।।
बढ़े-बड़ों की जो बातें मानते। जीवन में वे कभी नहीं हारते।।
करना बच्चो सदा ऐसा काम। तुम्हारा जग में हो अच्छा नाम।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’,