कविता

दो हजार इक्कीस का जाना

मेरी उम्र इक्कीस का जाना
ज़िन्दगी-नादां सा लगा !
दो हजार इक्कीस का जाना
एक हादसां सा लगा !!
मेरी उम्र इक्कीस का
जाना दास्तां सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !!
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !
जैसे किसी से मिलकर
बिछड़ना सा लगा !!
जाते हुए साल भी
यादें और दर्द दे गया,
किसी के नाम दो शब्द
सुकूं ए दवा सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !
जैसे किसी से मिलकर
बिछड़ना सा लगा !!
मेरी उम्र इक्कीस का
जाना दास्तां सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !!
अतीत हुए जो बीत गये
याद बनकर रह गये,
आनेवाला कल भविष्य का
एक इरादा सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !
जैसे किसी से मिलकर
बिछड़ना सा लगा !!
मेरी उम्र इक्कीस का
जाना दास्तां सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !!
जाने वाले को अलविदा
आने वाले को स्वागत,
जाने और आने की दौर में
ज़िन्दगी खपा सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !
जैसे किसी से मिलकर
बिछड़ना सा लगा !!
मेरी उम्र इक्कीस का
जाना दास्तां सा लगा !
दो हजार इक्कीस का
जाना हादसां सा लगा !!
— मनोज शाह ‘मानस’ 

मनोज शाह 'मानस'

सुदर्शन पार्क , मोती नगर , नई दिल्ली-110015 मो. नं.- +91 7982510985