कविता

खामोशियाँ

खामोश है खामोशियाँ
तनहा हैं तन्हाइयाँ।
ये कैसी लाचारगी है
कि खामोश तनहाइयों की
खामोशी नहीं टूटती,
तनहाइयों की खामोशी
तनिक करवट नहीं बदलती।
न हैरानी, न परेशानी, न बेचैनी
निश्पृह भाव से दोनों मौन है,
अपनी अपनी हालत में भी
दिखते रहते मगन हैं।
जिन्हें पढ़ना आसान नहीं है
खामोश तन्हाइयों में कभी भी
घुलना मिलना कठिन है।
मगर………
सीख जायें यदि हम आप
खामोश तनहाइयों से दोस्ती करना
तो विश्वास मानिए
इनसे बेहतर कोई हमदर्द नहीं है,
इनसे ईमानदार कोई मित्र नहीं है।
क्योंकि खामोशियाँ आपको
सँभलने का तो तनहाइयाँ
अपने आप को पढ़ने समझने ही नहीं
चिंतन का सुनहरा अवसर भी देती हैंं,
दोनों कुछ न कुछ हमें देती हैं।
शर्त इतनी भर है कि
कुछ ले सकें हम इनसे तो
ये हँसी खुशी देकर हमसे
स्वतः दूर हो जाती हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921