गज़ल
जो आँखें ढूँढती हैं वो नज़ारा क्यों नहीं मिलता
अगर मैं हूँ समंदर तो किनारा क्यों नहीं मिलता
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मेरे चारों तरफ यूँ तो बहुत से लोग रहते हैं
दिल जिससे मिला उससे सितारा क्यों नहीं मिलता
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मुख्तसर सी मुलाकातें तो होती हैं कई उससे
मुझे हमदम मेरा सारे का सारा क्यों नहीं मिलता
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हासिल तो बहुत कुछ है शिकायत पर है इतनी सी
वो मासूम सा बचपन दोबारा क्यों नहीं मिलता
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ऊँगली थाम के बच्चों को जो चलना सिखाती है
बुढ़ापे में उसी माँ को सहारा क्यों नहीं मिलता
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ठिकाने लाख हम बदलें चले आते हैं गम खुद ही
खुशियों को कभी पर घर हमारा क्यों नहीं मिलता
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।