कविता

कर्तव्य पाठ

बच्चा है फिर भी
बच्चे का भविष्य पीठ पर लादे
अपना कर्तव्य निभाने का
भरपूर प्रयास कर रहा है,
पर ऐसा नहीं है कि बच्चा खुशी से
ये सब कर रहा है,
वो बेबसी में अपना और अपने भाई का
बोझ पीठ पर लादे
किसी तरह जी रहा है।
समाज, सरकार को ही नहीं
संसार के रहनुमाओं, समाज सेवियों को
आइना दिखा रहा है,
हम सबकी असंवेदनशीलता को
सरेआम मुँह चिढ़ा रहा है।
जैसे भी हो जी तो रहा है
अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है,
हमें शर्मिंदा नहीं कर रहा है
हमारे मर चुके जमीर को जगा रहा है
मुर्दों को जगाने की कोशिश कर
हमें अपने कर्तव्य का पाठ पढ़ा रहा है
खुद जीने का हौसला कर रहा है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921