कविता

तुम ही तो हो

       तुम ही तो हो
सांसों के हर तार में
पतझड़ में बहार में
गुस्से में या प्यार में
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो.
तुम ही तो हो
आनंद के आगार में
दुख में और आभार में
प्रेम-सपन साकार में
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो.
तुम ही तो हो
मन के हर सुकून में
तन के हर जुनून में
जीवन के हर मज़मून में
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो.
तुम ही तो हो
जिससे है जीवन मेरा
जिसके बिन है घोर अंधेरा
जिससे संवरे सांझ-सवेरा
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो,
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो,
तुम ही तो हो, तुम ही तो हो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244