कविता

आज फिर बसंत आई हैं

पतझड़ की छोड़ चुन्नर
आज बसंत ने फिर ली अंगड़ाई हैं
हैं बरखा ऋतुओं की रानी
बसंत भी कहां पीछे रहने वाली हैं
गया सूखे पत्तों का मौसम
आज नौयौवन की पीली घाटा छाई हैं
ओढ़े चुन्नार पीली प्रकृति लहराई हैं
पीली हैं बसंत और पीली हैं सरसों फूल
अब तो छाई हैं यौवन पे बहार
खूब खिली फुलवारी हैं
ऋतु ने किया हैं नया सिंगार
आज फिर दुल्हन बन के आई हैं
जच रहा हैं ये मौसम युवा दिलों को
प्यार की हलचल फिर आई हैं
पाई हैं हरकतें दिलों ने
मौसम को दी बधाई हैं
आओ दिल के करें अरमां पूरे
दी हैं दिल ने दिल को बधाई हैं
आज फिर बसंत आई हैं
लाई हैं बसंती मौसम देखो
अबकी फिर बसंत आई हैं
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।