कविता

नारी बहती नदियां-सी

दो किनारों पर, नारी बहती नदियां-सी।
दोनो किनारे होते, अनमोल बहुत-ही।।
एक किनारा जनम देता,
देता नव रूप आकार।
प्यार दुलार से गढ़ता,
करता हर सपना साकार।
तपा-तपा कर सिखा-सिखा कर,
बनाता खरा सोना।
दूजे पल कहता बिटिया अब,
तुझको दूजे घर का होना।।
दूसरा किनारा अन्तिम पल तक,
लेता है इम्तिहान।
हर क्षण यही सिखाता,
नारी का बस देना है काम।
देते-देते करते करते,
हो जाती जीर्ण-शीर्ण।
अन्तिम समय आ जाता जब,
कहते यही था तेरा नसीब।
नारी मन गोते लगाता, दोनो किनारों के बीच।
एक किनारे पर अंकूर फूटा, दूजे किनारे पर हो गई विलीन।।
— प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रियंका त्रिपाठी

BSc(Maths),DCA,MCA,BEd शाह उर्फ पीपल गाँव IIIT Jhalwa प्रयागराज उत्तरप्रदेश