लघुकथा

लघुकथा – रेपुटेशन

अरसे बाद गाँव की गलियों में कदम रखते ही बच्चे ,बुढ़े सब उसे टकटकी निगाहों से देख रहे थे
अरे! ये तो मानिक है न..कैसा अपने पिता के साथ गाँव आता था और इसी मिट्टी में खेलता था.
इसके पिता को तो बहुत लगाव था,जबतक जीवित रहे सबकी मदद करते रहे.
अब ये आया है तो जरुर कुछ न कुछ करेगा ही.
लगता है बहुत बड़ा आदमी हो गया है.
साथ में लगता है कि कोई दोस्त भी लाया है.अच्छा है अपने पुरखों की मिट्टी से जुड़ने की चाह उत्पन्न हुई.
कार एक पेड़ के नीचे पार्क करके दोनों गाँव की गलियों को निहारते नाक ,भौं सिकोड़ते बढ़े जा रहे थे.
उसके पहनावे और चलने की ढंग पैसों के सामने हल्कापन दिखा रही थी.
काले चश्मे से देखती आँखों में पूरा गाँव ही गंदा दिखता.
ओह !!सिट..जगह जगह गंदगी फैली है.
हाँ यार!,इन्हें आदत है इस तरह के माहौल की.
इनको क्या मालूम क्लासी क्या होती है.
हाल ,हैलो करता हुआ सबकी हँसी का पात्र बना अपने पुरखों की जमीन पर पैर रखते ही उसे पास में बह रही गंदी नाली से बास आती है.
बड़ों को राम -सलाम करने की बजाय चारो तरफ का मुयायना करता नसीहतें दे रहा था.
आप लोग को रहने का ढंग भी नही मालूम..कैसे रहना चाहिए.
अवाक चेहरे लिए आज उसकी जमीन उसे धिक्कार रही थी.
जिसने तुम्हें बदलने के लिए इतने कष्ट सहे, कुछ कोशिश तुमने भी की होती.
आसपास कुछ न कुछ बदल गया लेकिन नही बदली तो पुरखों की जागीर.
मकसद अपने हिस्से की उसे बेच डालना था.
— सपना चन्द्रा

सपना चन्द्रा

जन्मतिथि--13 मार्च योग्यता--पर्यटन मे स्नातक रुचि--पठन-पाठन,लेखन पता-श्यामपुर रोड,कहलगाँव भागलपुर, बिहार - 813203