लघुकथा

बरसता आशीष

माँ की बरसी पर तस्वीर के आगे फूल चढ़ाते हुए मेरे आँसू जैसे सारे बाँध तोड़ कर निकल पड़े ..दोनों बच्चे और माधवी हाथ जोड़े बैठे थे। अश्रु के साथ कुछ स्मृतियां भी बह गयी।
 “माँ! देखो माधवी फिर एक महीने से मायके में है आफिस से फोन किया तो आने के लिए मना कर रही है .” मैं बार बार माधवी के मायके जाने से परेशान होकर बोला।
  ” मैं जानती हूँ वीरेंद्र!.. यह सब तेरे छोटे चाचा का काम है।”
  “कुछ ही साल बड़े, दोस्त जैसे चाचा  नही.. नही ” मुझे विश्वास ही नही हुआ .
“माँ !तुम तो बस कुछ भी बोलती रहती हो ” मैं बोला.
    “अरे कुछ पता भी है; तेरे तीनो चाचा मेरे सौतेले देवर है, तेरे पिताजी तो दबते थे इनसे पर मैं कभी नही दबी। ..तेरे छोटे चाचा चाहते थे कि तेरी शादी उनकी साली से हो पर मैंने मना कर दिया ..चिढ़कर दोनों मियां बीबी माधवी की माँ के कान भरते है और माधवी की माँ माधवी के।”
 “ओफ्फो.. मैं चाचा से फोन पर बात करता हूँ ।”मैं झुंझला कर बोला
  ” नही ..जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष.. चिंता न कर एक कागज ला और लिखकर डाक खाने में डाल दे.”
 माँ बोली थी “माधवी यह घर तेरा है.. इस घर मे तेरा स्वागत है ..हम लेने नही आयेंगे अगर अब नही आयी  तो वीरेंद्र तलाक़ के कागज भेजेगा “मैं अपनी छटी पास माँ को देखता रह गया फिर यही शब्द मैंने अपनी तरफ से लिख दिये।
हफ्ता भी न बीता माधवी लौट आई। दूसरे दिन माँ बोली  “सुन माधवी ! मैंने तुझे सोते से जगाया नही.. बैठे से उठाया नही ..अब तू इसको भी न समझे तो तेरी पढ़ाई लिखाई बेकार है”. फिर माधवी को चाचा चाची के बारे में बताया।
 “अरे मैंने तो जिंदगी से पंगा ले लिया  ये तो कुछ नही है ” माँ कोई भी परेशानी आने पर यही कहती थी। वाकई में माँ बहुत सशक्त थी ..पिताजी के न रहने पर सिलाई करके मुझे इंजीनियर बनाया, घर का खर्चा चलाया और जीवन भर सौतेली सास और देवरों के सामने नही झुकी।
  शायद माँ को अपनी मृत्यु का भान हो चुका था। मैं रोज रात को माँ के पास जरूर लेटता था । एक दिन माँ बोली  “वीरेंद्र ! मकान की किश्ते पूरी हो गयी हो तो तू अब एक कार खरीद ले चाहे पुरानी ।”
 माँ कहे और मैं ना मानू ..दो दिन बाद एक नयी कार मैंने घर के सामने खड़ी कर दी। माँ की खुशी का ठिकाना न था। पर खुशी ठहरने के लिए नही होती दो महीने बाद माँ को तीसरा हार्ट अटैक आया और इसी कार में हॉस्पिटल जाते हुए माँ के प्राण निकले।
  माँ चाहे इस दुनिया मे नही है पर मेरे   घर ,मन-मस्तिष्क में आजीवन रहेगी।  मैं माँ की तस्वीर के सामने नतमस्तक हो कर मन ही मन मे बोला ” माँ अगर तुम्हारी शक्ति न होती तो मेरा क्या होता ?अपना आशीष हमेशा बरसाना मेरे ऊपर।”
  ऐसा लगा माँ कह रही है “चिंता न कर।” मैं चौंक गया और उठ कर माँ के लगाए हरसिंगार के वृक्ष में माधवी और बच्चों के साथ जल अर्पण कर दिया। कुछ पुष्प झड़ पड़े उन्हें माँ का आशीर्वाद समझ कर माथे से लगा लिया।
— दीप्ति सिंह

दीप्ति सिंह

बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)